
चौसला (नागौर) क्षेत्र में खेतों व मेड़ पर उगने वाली मुंजा घास, जिसे लोकल भाषा में 'कूचाÓ कहते हैं, आमदनी का स्रोत बन रहा है। यह एक तरह की खरपतवार ही होती है। इससे उतरने वाले डंकल व पान्नी से छप्पर, झोंपे सहित विभिन्न वस्तुएं बनाई जाती हैं। इस वजह से किसानों को अच्छी कमाई हो रही है। मेड़ पर कूचे लगाने से किसानों को डबल फायदा मिलता है, मेड़ भी सुरक्षित और दूसरा इनसे होने वाली आमदनी। इसका खाद भी बनाया जाता है। प्रदेश के नागौर, डीडवाना - कुचामन, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, पाली, जालोर, सीकर, चूरू जिलों में कूचों का विशेष महत्व है।
फुट के हिसाब से मजदूरी
इनसे बने छप्परों में गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्माहट का अहसास होता है। बुजुर्गों ने बताया, कूचों की पान्नी से झोंपा बनाने में काफी मेहनत लगती है। कुशल कारीगर इसे बनाने के फुट के हिसाब से मजदूरी लेते हैं।
झोला हवा से बचाती है मुंजा घास
यह घास (कूचा) लंबी और मजबूत होती है। इसे मेड़ पर लगाने से झोला हवा से फसल का बचाव होता है, साथ ही खेत से मिट्टी कटाव भी रुक जाता है। इसे जुलाई माह में रेतीली मिट्टी, नदी नालों के किनारे और हल्की मिट्टी वाले इलाके में आसानी से उगाया जा सकता है। घास की रोपाई के लिए एक फीट गहरा, एक फीट लम्बा और एक फीट चौड़ा गढ्डा खोदना जरूरी है। पौधे लगाने के बाद उन्हें दो महीने तक पशुओं की चराई से बचाना चाहिए। जल्दी विकास के लिए समय-समय पर पानी अवश्य दें। इससे पौधे हरे और स्वस्थ रहते हैं। वैज्ञानिक तरीके से मुंजा घास को एक बार लगाने के बाद चार दशक तक कमाई होती है।
Published on:
15 Jun 2024 01:21 pm
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