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फिर से ‘…दीवाना’ बनाने से चूक गए धर्मेन्द्र, सनी और बॉबी

कुछ मौकों पर ही हंसाने में कामयाब रही 'यमला पगला दीवाना फिर से', कहानी ने किया बेदम

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जयपुर

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Aryan Sharma

Aug 31, 2018

jaipur

फिर से '...दीवाना' बनाने से चूक गए धर्मेन्द्र, सनी और बॉबी

डायरेक्शन : नवनीत सिंह
स्टोरी-स्क्रीनप्ले : धीरज रतन
डायलॉग्स : बंटी राठौड़
म्यूजिक : संजीव-दर्शन, सचेत-परंपरा, विशाल मिश्रा, डी सोल्जर्ज
सिनेमैटोग्राफी : जीतन हरमीत सिंह
एडिटिंग : मनीष मोरे
रनिंग टाइम : 147.52 मिनट
स्टार कास्ट : धर्मेन्द्र, सनी देओल, बॉबी देओल, कृति खरबंदा, राजेश शर्मा, असरानी, सतीश कौशिक, बिन्नू ढिल्लों
कैमियो : शत्रुघ्न सिन्हा, रेखा, सलमान खान, सोनाक्षी सिन्हा

आर्यन शर्मा/जयपुर. धर्मेन्द्र, सनी देओल और बॉबी देओल की 'यमला पगला दीवाना' सीरीज की तीसरी फिल्म 'यमला पगला दीवाना फिर से' का निर्देशन नवनीत सिंह ने किया है। इस फिल्म में पिता-पुत्र की यह तिकड़ी अपनी कॉमेडी से दर्शकों को हंसाती तो है, पर कमजोर कहानी और लचर स्क्रीनप्ले के कारण यह एंटरटेनमेंट का परफेक्ट रिदम नहीं पकड़ पाती। कहानी के केंद्र में अमृतसर निवासी वैद्य पूरण सिंह (सनी) है। उसके पास अपने पुरखों द्वारा जड़ी बूटी से बनाई गई दवा 'वज्र कवच' का फॉर्मूला है, जो बहुत-सी बीमारियों का कारगर इलाज है। वहीं, पूरण के भाई काला (बॉबी) के पास कोई काम नहीं है। वह 40 साल का है और अविवाहित है। इसके साथ ही दिनभर मटरगश्ती करता रहता है। पूरण के घर पर एडवोकेट जयवंत परमार (धर्मेन्द्र) किराएदार है, लेकिन किराये के नाम पर महज 115 रुपए देता है। यही नहीं, वह हमेशा खुद को अप्सराओं से घिरा महसूस करता है और फीमेल्स का दिल अपने चार्म से जीत लेता है। इधर, मर्फतिया फार्मास्युटिकल का ओनर वज्र कवच का फॉर्मूला पाना चाहता है। इसके लिए वह पूरण को आॅफर भी देता है, वह उसको बेइज्जत कर भगा देता है। फिर सूरत निवासी डेंटिस्ट चीकू (कृति) पूरण के पास आयुर्वेद सीखने आती है। इसके बाद वज्र कवच का फॉर्मूला चोरी हो जाता है। यहीं से कहानी में आता है दिलचस्प मोड़...।

बेदम कहानी से फीकी पड़ी एक्टिंग परफॉर्मेंस, धीमी रफ्तार करती है बोर
नवनीत सिंह ने 'मेल करादे रब्बा', 'धरती', 'सिंह वर्सेज कौर' जैसी मनोरंजक पंजाबी फिल्मों का निर्देशन किया है। यह उनकी पहली हिंदी फिल्म है। उनका निर्देशन तो ठीक-ठाक है, लेकिन बेदम कहानी के कारण मजेदार सिनेमा नहीं गढ़ पाए। स्क्रीनप्ले में कसावट नहीं है। फिल्म की रफ्तार भी धीमी है। हालांकि डायलॉग्स और वन लाइनर्स कॉमिक पंच की तरह हैं, जो हंसने का मौका देते रहते हैं। धर्मेन्द्र, सनी और बॉबी का अभिनय अच्छा है, खासकर धर्मेन्द्र का रंगीन मिजाज और मासूमियत दिल जीत लेती है। गुजराती लड़की के रोल में कृति खरबंदा ग्लैमरस अंदाज में अच्छी लगी हैं। कैमियो में शत्रुघ्न सिन्हा दमदार हैं। वहीं फिल्म के आखिर में आने वाले गाने 'रफ्ता रफ्ता' में रेखा, सलमान खान और सोनाक्षी सिन्हा को देखना सुखद है। गीत-संगीत कुछ खास नहीं है। सिनेमैटोग्राफी ठीक-ठाक है, पर चुस्त संपादन की जरूरत महसूस होती है।

क्यों देखें : एक मजेदार फिल्म के लिए अच्छी कहानी की जरूरत होती है, जो 'यमला...' में फिर से मिसिंग है। कमजोर कहानी ने फिल्म के एक्टर्स की परफॉर्मेंस पर पानी फेर दिया है। अगर आप देओल फैमिली के फैन हैं तो ही देखें 'यमला पगला दीवाना फिर से'।

रेटिंग: 2 स्टार