
- जितेन्द्र सिंह शेखावत
जयपुर। करीब 80 साल पहले घरों में आग लगने और काले मुंह के बंदर के खौफ मचाने की अफवाहों से सारा शहर दहशत में आ गया था। उन्हीं दिनों सी-स्कीम में परवण की तलाई पर मानगार्ड सेना का भगवन्तदास भवन बनाने के लिए तलाई के श्मशान को हटाया गया था। इसके चलते मोहल्लों में किसी न किसी के घर में स्वत: आग लग जाने की अफवाह ने तेजी से जोर पकड़ लिया। इसके साथ ही काले मुंह के बंदर के आतंक ने तो लोगों की नींद ही ***** कर दी थी।
श्मशान को उठा देने से जाग गया मसाण
आग व बंदर के खौफ को लेकर लोगों ने मान लिया कि तलाई के श्मशान को उठा देने से वहां का मसाण जाग गया है और नाराज हनुमान दूत बंदर यानी मोल्या भी आतंक फैला रहा है। चारदीवारी में बसे करीब दो लाख की आबादी के शहर की कचहरी, दफ्तरों, गलियों, चौराहों और पान की दुकानों पर जितने मुंह उतनी बातें होने लगी। वर्ष 1938 के उस दौर की अफवाह भरी घटनाओं की किवदंतियां आज भी बुजुर्गों की जबान पर हैं।
छतों पर जाने से कतराते थे लोग
इतिहासकार आनन्द शर्मा के मुताबिक रोज नित नई अफवाहों के चलते कभी परदे, खाट और बक्सों में रखे कपड़ों में आग लगने की लोगों में चर्चा रहती। वर्तमान सचिवालय भवन की जगह सेना मुख्यालय बनाने के लिए श्मशान के खत्म होने से उसके चेतन होने की बातें भी होने लगी। काले मुंह के बंदर के आतंक की अफवाहों का हल्ला तो देर रात मचता रहता। डर के मारे लोग छतों पर जाने से कतराते। बंदर आने का हल्ला मचता तब लोग खाली पीपे और लाठियां बजाकर हाका लगाते। छतों से चिल्लाते भागो रै भागो मोल्यो आगो। छतों से कहते ..अजी बांदरों तो अबार बड़ पर छै। .. हवा महल सूं छलांग लगागो आदि आवाजें उठती तब धमा चौकड़ी मच जाती। कोई कहता ... अजी वो मोल्यो तो हड़क्यो छै।
कवि और गालीबाजी के अखाड़ों में गुंजता- लाय और मोल्यो का बखान
आज की तरह जनसंचार के साधन नहीं थे। शहर के कवि और गालीबाजी के अखाड़ों में बंदर को मोल्या के नाम से सम्बोधित करते हुए घटनाओं को कविताओं में पिरोकर सुनाया। बंदर की अफवाह तो ऐसी फैलती कि हड़बड़ी और भागमभाग में कई लोग हाथ पैर तक तुड़वा बैठे। अखाड़ों के गुलाब भरावा, गुट्टन बीजन, ज्ञानदत्त सिद्ध, बाबू लाल सैनी आदि गालीबाजों ने ढूढाड़ी में बंदर और आग लगने के किस्सों को बरसों तक सुनाया। भाया कस्यो जमानो आगो रै, दिन मै लागै लाय, रात नै मोल्यो खागौ रै। भागो रै भागो मोल्यो आगौ। कवि प्रहलाद महाराज ने सुनाया कि जाट का कुआं का रास्ता में बंदर ने हवेली से ऊंची छलांग लगाई तब वह बिजली के तारों में उलझ कर मर गया। सियाशरण लश्करी ने बताया कि उस साल भीषण गर्मी पडऩे से पहाड़ में आग लगती रहती और गर्मी से सारा शहर हाल बेहाल हो गया था।
Published on:
05 Mar 2018 06:01 pm
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