
लाल मंदिर की मूर्ति
जयपुर. मंदिरों की पहचान अमूमन उनके चमत्कार, बनावट शैली, आकार, क्षेत्रफल और मूर्ति या उसके इतिहास से होती हैं लेकिन शहर में लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थापित दो मंदिर है। जिन्हें रंग से पहचाना जाता हैं। अधिंकाश लोगों को ये पता नहीं की उसमें कौन से देवी-देवता विराजमान हैं। हम बात कर रहे हैं खातीपुरा में खिरणी रोड स्थित लाल मंदिर और सफेद मंदिर की। ये लगभग एक सदी पुराने ही नहीं बल्कि इस रोड की पहचान के साथ-साथ आसपास बसी महाराणा आरके पुरम,प्रताप नगर, रणजीत नगर, चांद बिहारी, ओम शिव नगर, अमर नगर, हनुमान नगर, जसवंत नगर सहित आसपास की एक दर्जन से ज्यादा कॉलोनियों की पहचान भी इसी से है। इसे बतौर पत्ते में लैंडमार्क इस्तेमाल किया जाता है। इन कॉलोनियों में रहने वाले बाशिंदों की ये दोनों मंदिर आस्था का प्रमुख स्थान भी है। इसके अलावा रेल्वे लाइन के पार झोटवाड़ा एरिया आने पर भी बस स्टॉप को भी लाल मंदिर के नाम से जाना जाता है।
यहां सालभर कार्यक्रम होते रहते है। जिसमें बड़ी तादाद में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
ग्वाले ने सुनी थीं आवाज
पंडित मुकेश शर्मा ने बताया कि किवदंती हैं कि लाल मंदिर लगभग एक सौ साल पुराना है। यहां उस दौर में किसी भेड़-बकरियां चरा रहे ग्वाले को एक आवाज सुनाई दी कि अगर मेरी सेवा- पूजा होगी तो यहां मैं लोगों के दुख दर्ज ठीक करूं गा। जब से यह मूर्ति जमीन से निकली और इसकी जगह पर मंदिर बनवाया गया। यहां सालभर आयोजन होते रहते है। इसमें बड़ी तादाद में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
लाल मूर्ति -सफेद चबूतरे से पहचान
लोगों ने बताया कि महाराणा प्रताप नगर स्थित लाल मंदिर में लाल मूर्ति निकलने से पहचान मिली। इसके अलावा किसी जमाने पर ओमनगर कॉलोनी के मुख्य द्वार पर उस जमाने में खेती हुआ करती थी। इसके चलते खेजड़ी के बड़े पेड़ के नीचे हनुमान जी और भैंरु जी महाराज का चबूतरा बना हुआ था। इस पर सफेद रंग रोगन हो रखा। इससे सफेद चबूतरा और इस पर गुम्बद पर सफेद रंग होने से इसे सफेद मंदिर नाम दिया गया।
ये खास खास
कॉलोनियों के मुख्य द्वार पर होने से लोगों को धार्मिक कार्यक्रमों से रहता जुड़ाव।
अनजान लोगों को आने में नहीं होती दिक्कतें। दूर से नजर आते हैं खिरणी फाटक- खातीपुरा रोड के किनारे बने दोनों मंदिर।
Published on:
26 Aug 2018 11:23 pm
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