
साबरकांठा से ग्राउंड रिपोर्ट: यहां की राजनीति कभी बढ़ाती हिम्मत तो कभी लगती कठिन डगर
हिम्मतनगर। गुजरात में अगर उत्तर गुजरात अलग तासीर रखता है तो उत्तर गुजरात में भी साबरकांठा का मिजाज कुछ अलग है। यहां आधुनिकता है तो परम्पराओं का घर भी है। यहां यहां नदी है, मैदान है, पहाड़ हैं, खेत हैं, उद्योग हैं, आदिवासी हैं तो आधुनिक रंगढंग भी हैं। प्रदेश की राजधानी गांधीनगर के निकट साबरमती नदी के कांठे अर्थात् किनारे पर स्थित जिला है साबरकांठा। चूंकि बात चुनावों में हो रही है तो राजनीति की ही चर्चा होगी।
राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में सीटें तो कम है पर यहां की राजनीति पार्टियों की नाक में सदा दम करके रखती है। 2012 के विधानसभा चुनावों में यहां भाजपा 4 में से 3 सीटें हार गई। पर जब 2017 के चुनाव हुए तो पासा पलट गया और 3 सीटें भाजपा ने झटक ली और कांग्रेस 1 सीट ही बचा पाई। इस बीच पांच साल में राजनीति में काफी उलटपलट हुई है। कांग्रेस ने अपने गढ़ की जो सीट बचाई थी वहां के विधायक अब भाजपा के साथ हैं। इस बीच 2018 में यहां प्रवासियों को लेकर जो मुद्दे उठे थे उसने पूरे उत्तरभारत की राजनीति गरमा गई थी। स्थानीय आंदोलन के चलते प्रवासियों का पलायन तब बड़ा मुद्दा बना था। पर फिलहाल लोग इसे भूलकर आगे बढ़ चुके हैं। खेतों से लेकर उद्योगों में यहां यूपी बिहार के लोग देखे जा सकते हैं। स्थायी रूप से बस गए प्रवासियों के वोट भी यहां चर्चा में हैं।
जिले के हिम्मतनगर, ईडर, खेड़ब्रह्मा और प्रांतीज में चुनावी चौसर बिछ गई है। सबसे प्रमुख सीट है हिम्मतनगर। हिम्मतनगर शहर साबरकांठा जिला मुख्यालय है। यहां भाजपा ने मौजूदा विधायक राजूभाई चावड़ा को टिकट नहीं दिया है। भाजपा ने वीडी झाला को टिकट दिया है। पार्टी ने स्थानीय विरोध को देखते हुए यह निर्णय किया है। जबकि कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 1500 के करीब वोटों से हारे कमलेश कुमार जयंतभाई पटेल को ही फिर से उतारा है। पिछले चुनाव में हार के अंतर से ज्यादा नोटा के वोट थे। इस बार आम आदमी पार्टी ने निरमलसिंह परमार को उतारा है।
वोटरों से बात की तो पता चला कि कांग्रेस और भाजपा की हारजीत में आम आदमी पार्टी को प्राप्त वोट महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वंजारावास के मोहम्मद जुनेद ने बताया कि मुकाबला दिलचस्प है। आम आदमी पार्टी जितने वोट लेगी भाजपा को उतना ही लाभ मिलेगा। इस बार विधायक के प्रति कुछ रोष था वह भी चेहरा बदलने से जाता रहा है। जुलाई में यहां गढोदा चौकी क्षेत्र में प्रधानमंत्री ने एक बड़ी परियोजना का उद्धाटन किया था। विकास के मुद्दे पर भाजपा चुनाव में है।
जिले में ईडर विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है। यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। विधानसभा अध्यक्ष रमनलाल वोहरा यहां से पांच बार विधायक बने हैं। 2017 में यहां भाजपा ने अपने प्रचार वीडियो में विकास का किरदार निभाने वाले एक्टर कनोडिया हितु को टिकट दिया था। उन्होंने कांग्रेस के मणिभाई वाघेला को चुनाव हराया था। दो राज्यों की वोटर लिस्ट में नाम को लेकर भी हितु विवादों में रहे थे। इस बार भाजपा ने यहां से फिर से दिग्गज नेता रमणलाल वोहरा को उतारा है तो कांग्रेस से रमाभाई सोलंकी मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी से जयंतभाई परनामी प्रत्याशी हैं। भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाने में कांग्रेस के रास्ते में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी जयंतभाई मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। जिले की प्रांजित विधानसभा सीट से भाजपा के मौजूदा विधायक गजेंद्र सिंह परमार मैदान में हैं तो कांग्रेस नेे यहां से बहेचर सिंह वाघेला को उतारा है। आम आदमी पार्टी के अल्पेश पटेल भी यहां मैदान में हैं। सीट भाजपा का गढ़ रही है पर इस बार कई स्थानीय मुद्दे लोगों में चर्चा में हैं। इनमें पेयजल और सिंचाई का मुद्दा ज्यादा चर्चा में है।
साबरकांठा जिले की खेड़ब्रह्मा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। 2017 में यहां से कांग्रेस के अश्विन कोतवाल चुनाव जीते थे। 2007 से लगातार विधायक रहे कोतवाल कांग्रेस का बड़ा आदिवासी चेहरा माने जाते हैं। कोतवाल अब भाजपा में शामिल हो गए हैं और इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस ने यहां से तुषार चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस के लिए यहां अपना गढ़ बचाने की चुनौती है तो भाजपा का पूरा जोर खेड़ब्रह्मा को जीतने पर है। इस सीट की जीत आदिवासी वोटर के लिहाज से महत्वपूर्ण है।
साबरकांठा - कुल सीट- 4
2017 - भाजपा 4 कांग्रेस 2
2012 - भाजपा 1 कांग्रेस 3
Published on:
25 Nov 2022 01:13 pm
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