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कारसेवा में अयोध्या गए गुल मुहम्मद को पत्नी ने नकारा, दोबारा निकाह के बाद अपनाया, अब आमंत्रण न मिलने से हैं निराश

Ram Mandir news: कारसेवकों की आपने अनेकों दिलचस्प कहानियां सुनी होंगी। लेकिन आज जिनके बार में आप जानेंगे वह अपने आप में खास है। कहानी जयपुर से है। स्थानीय निवासी गुल मोहम्मद मंसूरी 1992 में कारसेवा के लिए जयपुर से अयोध्या गए। वह उस जनसंघ से जुड़े थे।

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Ram Mandir news: कारसेवकों की आपने अनेकों दिलचस्प कहानियां सुनी होंगी। लेकिन आज जिनके बार में आप जानेंगे वह अपने आप में खास है। कहानी जयपुर की है। स्थानीय निवासी गुल मोहम्मद मंसूरी 1992 में कारसेवा के लिए जयपुर से अयोध्या गए। वह उस समय जनसंघ से जुड़े थे। पूर्व बीजेपी नेता व प्रवक्ता कैलाश भट्ट व राज्यसभा सांसद ललित किशोर चतुर्वेदी के साथ गुल मोहम्मद कारसेवा के लिए अयोध्या पहुंचे। वह बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराते वक्त अन्य संघ साथियों के साथ वहां मौजूद रहे। शनिवार(20 जनवरी) को 1992 के उन पलों को याद करते हुए गुल मोहम्मद मंसूरी ने संवाददाताओं से बात की। उन्होंने कहा, बाबरी मस्जिद को तोड़ने के बाद वापस जयपुर लौटे तो उनके होश फाख्ते रह गए।

राममंदिर आंदोलन से जुड़ने का असर यह हुआ कि समाज ने उनके खिलाफ उस समय फतवा जारी कर दिया। लोगों ने उनका नाम गुल मोहम्मद की जगह गुल्लूराम नाम रख दिया। और खुद की पत्नी ने मुस्लिम समाज के दबाव के कारण गुल मोहम्मद को अपनाने से इनकार कर दिया। आखिर में समझाइश हुई, दोबारा से गुल मोहम्मद बनने के लिए कलमा पढ़ना पड़ा और खुद की पत्नी से दोबारा निकाह किया। अब राममंदिर बनने पर उन्होंने खुशी जताई है। और कहा कि राम मंदिर भारत में नहीं बनेगा तो क्या पाकिस्तान में बनेगा। उन्होंने कहा कि निमंत्रण नहीं मिलने से आहत जरूर हैं लेकिन अल्लाह ने चाहा तो आगे दर्शन जरूर करुंगा। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई है कि अब राम जन्म भूमि का मुद्दा समाप्त होने के बाद हिन्दू और मुसलमान के बीच प्रेम भाव दोबारा से बढ़ेगा।

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जनता पार्टी से विधायक भी रहे

गुल मोहम्मद मंसूरी 1975 में जनसंघ से जुडे़। 1977 में उन्हें जनसंघ ने जोहरी बाजार सीट से उम्मीदवार बनाया। वह MLA चुने गए। और उन्होंने तत्कालीन भैरों सिंह शेखावत सरकार के साथ काम किया। 80 वर्षीय मंसूरी शनिवार को, घुटने की इलाज के लिए जयपुर स्थित अस्पताल में दाखिल हुए हैं। इस दौैरान उन्होंने राममंदिर आंदोलन से जुड़ी यादों को याद किया। मंसूरी ने बताया कि, आंदोलन के तहत अयोध्या कूच हुआ और बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया तब कारसेवकों की टोली में वह भी शामिल थे। हालांकि मस्जिद के ऊपर वह नहीं चढ़े लेकिन उस ढांचे के नीचे मौजूद रहे।

उन्होंने कहा कि उस वक्त नारेबाजी के साथ हजारों की संख्या में कारसेवक ढ़ांचे पर मौजूद थे, तनाव का माहौल था। बाद में लाठी डंडे चले तो भगदड़ मच गई। उसके बाद देशभर में बवाल कटा तो जयपुर में भी तनाव बढ़ गया। फिर आंदोलन के बाद ट्रेन के डिब्बे में ठूस ठूस कर जैसे तैसे जयपुर पहुंचे लेकिन घर के बाहर समाज के लोग ही उन्हें मारने दौड़ पड़े। फिर जब धीरे धीरे तनाव शांत हुआ तो समाज ने उनके परिवार को किनारे कर दिया। लेकिन अब ख़ुशी है कि वह आंदोलन आज रंग लाया।

बेटे यामीन ने बताया, परिवार के लिए मुश्किलों भरा दौर रहा

उनके बड़े बेटे, यामीन ने बताया है कि उनके परिवार पर अब भी खतरा है। उन्होंने कहा कि उस वक्त मेरी उम्र काफी कम थी। लेकिन आज भी मुझे कुछ घटनाएंं अच्छे से याद है। जब अब्बूजान अयोध्या से जयपुर लैटे, तो बड़ी संख्या में मेरे जयपुर स्थित घर को लोगों ने घेरकर पत्थरबाजी की। किसी तरह होमलोगों की जान बची। यह यहीं नहीं रुका, मंसूरी समान ने हमारे परिवार को धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने पर पाबंदी लगा दी। हालांकि समाज में कई ऐसे भी लोग थे जिन्होंने हर मुश्किल वक्त में उनका परिवार का साथ दिया।

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