
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की वारदात को रोका जा सकता था। गृह मंत्रालय के पूर्व विशेष सचिव डॉ. महेन्द्र लाल कुमावत ने यह खुलासा किया है। जयपुर निवासी डॉ. महेंद्र रिटायर्ड आईपीएस है और सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक भी रह चुके है। गांधी जी की हत्या के संबंध में विभिन्न जांच रिपोर्टों का अध्ययन करने वाले कुमावत ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो की लापरवाही व संवादहीनता के चलते यह वारदात हुई।
उन्होंने बताया कि गांधी जी की हत्या के 10 दिन पहले 20 जनवरी, 1948 को मदनलाल पाहवा ने बिरला हाउस दिल्ली में बम विस्फोट किया था। वह पकड़ा गया। मौके से नाथूराम गोडसे व अन्य साथी भाग निकले। पाहवा ने पूछताछ में वारदात की पूरी जानकारी दी। फिर भी दिल्ली पुलिस एवं देश की इंटेलिजेंस एजेंसी ने न तो गोडसे व अन्य सदस्यों को पकड़ा और न ही गांधी जी की सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता किया।
दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली पर कोर्ट ने की थी गंभीर टिप्पणी
स्पेशल कोर्ट ने 10 फरवरी, 1949 को नाथूराम गोडसे एवं नारायण आप्टे को मौत की सजा सुनाई। गिरोह के चार सदस्य हत्या के षड्यंत्र के दोषी पाए गए। स्पेशल जज आत्मा चरण आईसीएस ने फैसले में दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पाहवा की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने जांच में थोड़ी सी भी सजगता दिखाई होती तो शायद इस त्रासदी को टाला जा सकता था।
संविधान सभा में उठा था मामला
हत्या का मामला संविधान सभा में भी उठा। मेरठ के कमिश्नर एसएस खेड़ा (जो कि बाद में भारत सरकार में कैबिनेट सेक्रेटरी भी रहे) ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री को लिखा था कि गांधी जी की हत्या किसी पागल आदमी का कृत्य नहीं है। इसे पूरी साजिश के तहत अंजाम दिया गया था। पुलिस के पास गोडसे और साजिश की जानकारी थी। यह सिर्फ पुलिस की अयोग्यता नहीं थी बल्कि सरकारी सिस्टम की इच्छा शक्ति की कमी है।
अन्य रिपोर्ट में खुलासा
मार्च 1965 में कमिश्नर बने जस्टिस जीवनलाल कपूर ने 1969 में दी अपनी रिपोर्ट में दिल्ली और मुंबई पुलिस की कार्यप्रणाली एवं दक्षता की कमी पर गंभीर टिप्पणी की। रिपोर्ट में नाथूराम गोडसे एवं उसके साथी आप्टे द्वारा सितंबर 1944 में सेवाग्राम में गांधी जी पर किए हमले का भी विवरण हैं।
Updated on:
30 Jan 2024 06:16 pm
Published on:
30 Jan 2024 06:08 pm
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