12 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

ऐसे थे जयपुर के चौकीदार, खजाने की रक्षा में बेटे का सिर भी किया था कलम

हैरीटेज विंडो

2 min read
Google source verification
chowkidaar

ऐसे थे जयपुर के चौकीदार, खजाने की रक्षा में बेटे का सिर भी किया था कलम

जयपुर. चौकीदार शब्द को लेकर आज राजनीति में खलबली मची हुई है। चुनाव से पहले यह शब्द कुछ ज्यादा ही गूंज रहा है। आज के जमाने में चौकीदार हर जगह हैं, लेकिन बीते कल में तत्कालीन ढूंढाड़ राज्य के चौकीदारों की बहादुरी की चर्चा आज भी होती है। हमारे स्तंभाकार जितेंद्र सिंह शेखावत ने की जयपुर की चौकीदारी प्रथा की पड़ताल-

जयपुर के ढूंढाड़ राज्य की प्रजा के जान-माल और सरकारी खजानों की सुरक्षा का जिम्मा ईमानदार और वफादार चौकीदारों के पास था। ढूंढाड़ व शेखावाटी सहित करीब डेढ़ हजार गांवों व कस्बों में माकूल चौकीदारी व्यवस्था रही। सन् 1940 में इस व्यवस्था में सुधार करने के लिए बनी कमेटी ने यहां सुदृड़ चौकीदारी प्रबंधन को राजपूताना की दूसरी रियासतों से बेहतर बताया।

मीणा जाति के इतिहासविद् रावत सारस्वत ने मीणा जाति को वफादार, ईमानदार और अतिविश्वस्त बताया और लिखा कि जयगढ़, नाहरगढ़ आदि के गुप्त खजानों की रक्षा का काम मीणा जाति के पास रहा। सारस्वत ने लिखा कि जयपुर क्षेत्र के मीणा जमींदार कहलाते हैं। इसके विपरीत चौकीदार कहलाने वाले कुछ मीणा शेखावाटी व जयपुर के हैं। कछवाहा राजपूतों ने ढूंढाड़ का मीणा शासन छीना, तब मीणा राजाओं के बीच सालों तक खूनी संघर्ष का दौर चला।

आमेर के राजा कुंतल व बाद में भारमल ने राजनीतिक मित्रता का सूत्रपात करते हुए बारह गावों के मीणों को जयगढ़, नाहरगढ़ आदि अकूत खजानों का प्रभारी नियुक्त कर जागीरदार बनाया। सन् 1924 में चौकीदारी विभाग को किलेजात बक्षीखाना विभाग में शामिल कर दिया गया। मीणा इतिहास में लक्ष्मीनारायण झरवाल ने लिखा कि नाहरगढ़ किले के मीणा सरदार ने खजाने की मामूली जानकारी लीक होने पर अपने बेटे का सिर कलम कर दिया था। आजादी के बाद तक जयगढ़ आदि खजानों की चाबी मीणा सरदारों के पास रही।

गहनें यों ही छोड़कर चले जाते थे
इतिहासकार हनुमान शर्मा ने लिखा कि मीणा प्रजा व सरकारी धन के असली रक्षक रहे। ये पर्वतों की खोह में रहते हैं। ये पहरायत या चौकायत के रूप में रहकर जनधन की रक्षा करते हैं। बड़ी चौपड़ पर तख्तों पर बैठ सोना-चांदी का कारोबार करने वाले अपना सोना चांदी घर ले जाने के बजाय विश्वसनीय चौकीदारों के भरोसे वहीं छोड़कर घर चले जाते।

बहादुरी के किस्से आज भी मशहूर
सातों मुख्य प्रवेश द्वारों के साथ सुरक्षा का काम भी इनके पास रहा। बिज निवासी हीदा तो जयसिंह द्वितीय के कहने पर कांचीपुरम से वरदराज विष्णु की मूर्ति को जयपुर ले आया। विद्वानों ने अश्वमेध यज्ञ के लिए इस मूर्ति को महाराजा से मांगा था। मूर्ति लाने पर बहादुरी से खुश हो जयसिंह ने सूरजपोल परकोटे के एक रास्ते का नाम हीदा की मोरी रखा। माधोसिंह के विश्वस्त रघुनाथ ने रामसागर की शिकार ओदी पर बिना हथियार के एक शेर से मुकाबला कर मार दिया था।