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Holi 2023: जयपुर की 300 साल पुरानी परंपरा वाली होली, जिस का है बेहद खास अंदाज

ये परम्परा 300 साल पहले अरब से जयपुर आई थी। यहां होली खेलने के लिए लड्डू के आकार के गुलाल गोटे बनाए जाता है। इस गोटे को गुलाल रंग से बनाया जाता है। खेलने वाली होली के दिन एक-दूसरे पर गुलाल गोटे को फेंकते है।

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हर किसी का होली का त्योहार मनाने का तरीका अलग होता है। होली का त्योहार सबके जीवन में खुशियां बढ़ाने का अवसर होता है। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि होली का नाम सुनते ही दिमाग में दुनिया की दो बेहतरीन होली की जगहों का नाम याद आता है मथुरा और बरसाना। जहां पर रोम रोम में राधा कृष्ण की लीलाएं बसी हुई है, लेकिन राजस्थान में एक जगह ऐसी जगह भी है, जहां 300 साल पुरानी परंपरा से होली खेली जाती है। जो दुनिया में लोकप्रिय है। राजस्थान की गुलाबी नगरी में एक ऐसी परंपरा है जो सभी को यादगार रहती है।

ये परम्परा 300 साल पहले अरब से जयपुर आई थी। यहां होली खेलने के लिए लड्डू के आकार के गुलाल गोटे बनाए जाता है। इस गोटे को गुलाल रंग से बनाया जाता है। खेलने वाली होली के दिन एक-दूसरे पर गुलाल गोटे को फेंकते है। यह गुलाल गोटे इतना मुलायम होते है कि शरीर पर पड़ते ही फट जाता है। जिस की वजह से हर तरफ गुलाल का रंग और खुशबू बिखेर जाती है। जिस से कुछ देर तक सभी का मन मोह लेता है। होली खेलते समय जब पीठ पर गोल-गोल गोटे पड़ते है, तो बिखरते रंग को कोई भी भूल नहीं सकता है। होली पर विदेशी सैलानियों जब जयपुर की गुलाल गोटे की होली देखते है इस की खुशबु हमेशा के लिए यादों में ताजा रहती है।

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गुलाल गोटे की परम्परा 300 साल पहले की है जिस की वजह से इस में वक्त के साथ कई बदलाव आए है। गुलाल गोटे के कई पुश्तों रूपों को देखा जा सकता है। राजस्थान की पिंक सिटी में अनोखा लड्डू के आकार के गुलाल गोटे तैयार किए जाता है। जयपुर के पुराने शहर में रहने वाले गुलाल गोटा के कारीगर बताते है कि उनके परिवार करीब 300 सालों से गुलाल गोटा बनाने की परम्परा निभा रहे है। उनके पूर्वजों को कच्छावा राजा ने 300 साल पहले अरब से लाकर यहां बसाया था। राज परिवार उनके पूर्वजों के बनाए गुलाल गोटों से होली खेलता था, लेकिन अब ये खेल राज परिवार से निकलकर आम जनता तक पहुंच चुका है।कारीगरों का कहना है कि राजा सवाई जयसिंह ,सवाई मानसिंह जब होली के दिन जनता से संवाद के लिए आते थे तो लोग उन्हें गुलाल गोटे मारते थे। क्योंकि सबका रंग लगाना संभव नहीं हो पाता था इसीलिए गुलाल गोटे के जरिये महाराजा के साथ प्रजा होली खेला करते थे। तब ही से यह परंपरा चली आ रही है।

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किस प्रकार बनाया जाता है गुलाल गोटे
चार ग्राम लाख और आठ ग्राम गुलाल इन दोनों का संगम से बनाया जाता है गुलाल गोटे को । पूर्व राज परिवारों से लेकर आम जनता तक इस को पसंद किया जाता है। मणिहारों के रास्ते पर सजी दुकानों से लेकर ऑनलाइन बाजार तक में इन गुलालगोटों को ख़रीदा जाता है। इसकी खासियत इसका लाख और खालिस अरारोट की गुलाल होती है, जो किसी भी तरह का नुकसान नहीं करती है। इसे बनाने के लिए लाख को पहले गर्म करते है और फिर फूंकनी की मदद से इसे फुलाकर उसे गुलाल भरकर बंद कर देते है। इसे जैसे ही किसी पर फेंका जाता है वैसे ही लाख की पतली परत टूट जाती है और गुलाल से आदमी सराबोर हो जाता है। आधुनिक दौर में इसे गोल आकार के साथ ही अंगूर, सेब, अनार समेत कई आकारों में बनाया जाता है।