
अक्सर देखा जाता है कि हमारे देश मे मां के स्वास्थ्य को उतनी तरजीह नही दी जाती जितनी कि घर के पुरूष सदस्यों को और इसका कारण भी यही है कि भारत जैसे पुरूष प्रधान देश मे घर की मां हमेशा अपने बच्चो अपने पति अपने बड़ो की चिंता करती है पर खुद के स्वास्थ्य की न परवाह करती न करने देती। इसी लापरवाही के कारण कभी कभी स्थिति गंभीर हो जाती है। हालाँकि अब कुछ जागरूकता इस विषय मे जरूर आई है और इसी लिए ये आर्टिकल इसी दिशा में एक छोटा सा प्रयास है।
अमूमन महिलाओं में ये धारना रहती है कि हार्ट डिजीज पुरुषों की बीमारी है ,उन्हें ये प्रभावित नही कर सकती। जबकि ऐसा बिल्कुल नही है। महिलाओ में हार्ट अटैक के लक्षण पुरूषों के तुलना में कम आते है जिससे अक्सर हार्ट डिजीज पकड़ में नही आपाती।
40से 50 वर्ष की उम्र में महिलाओं में हार्ट डिजीज का रिस्क काफी ज्यादा होजाता है इस इसलिए क्योंकि इस उम्र में अक्सर मेनोपोज़ की स्टेज आजाती है जिससे हॉर्मोन के नही बनने से उस का रक्षात्मक रोल कम होजाता है।
दूसरा इस उम्र में घर परिवार की जिम्मेदारी साथ ही आफिस कार्य की अधिकता काफी ज्यादा रहती है। कैरियर अपने पीक पर होता है एवम इसके लिए महिलाओं को घर के साथ साथ ऑफिस में भी अपना 100% देना होता है। ऐसे में आज के दौर में टारगेट ओरिएंटेड जॉब्स के कारण मानसिक तनाव काफी ज्यादा होता है जिससे हार्ट पर बुरा असर पड़ता है।
तीसरे इस उम्र के पड़ाव पर जबकि बच्चे बड़े हो जाते हैं, पढ़ाई के लिए घर से बाहर चले जाते है या जॉब के लिए घर से दूर रहते है तो अकेलेपन के कारण मानसिक एवं भावनात्मक रूप से एक माँ के दिल पर काफी असर पड़ता है। जिसके कारण हार्ट अटैक या स्ट्रेस कार्डियोमायोपथी जिसमे हार्ट की पम्पिंग अस्थायी रूप से काफी कम हो जाती है, का खतरा काफी बढ़ जाता है।
एक माँ का रोल तब से शुरूहोजाता है जब वो प्रेग्नेंट होती है इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान हार्ट की हैल्थ का खयाल रखना काफी जरूरी होता है।
पेरीपार्टम कार्डियोमायोपेथी गर्भावस्था मे होने वालीहार्ट की एक ऐसी बीमारी है जिसमें हार्ट आकार मेबडा हो जाता है एवं इसकी पंपिंग क्षमता काफी कमहो जाती है।
लक्षण:
अकसर हार्ट डिजीज या हार्ट अटैक को पहचानने के कुछ खास लक्षण होते हैं जिनसे माताओं के हार्ट डिजीज को पहचाना जा सकता है। जैसे
छाती में दर्द होना, सिकुड़न महसूस होना
गर्दन या बाजू में दर्द होना
सांस फूलना
सांस लेने में तकलीफ होना
जी मिचलाना
चक्कर आना
शरीर का पसीने से तरबतर होजाना
जरूरत से ज्यादा कमजोरी आ जाना
नींद ठीक से नहीं आना असहज हो जाना
पैरों में सूजन आ जाना
दिल की धड़कन अनियमित हो जाना
पेशाब कम हो जाना
बचाव:
मां का हार्ट का ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है जितना कि अन्य सदस्यों का।अकसर माताओंद्वारा ही नजर अंदाज की आदत के चलते उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। महिलाओ द्वारा जीवन शैली में कुछ बदलाव करके हार्ट डिजीज से बचाव किया जा सकता है, साथ ही स्वस्थ जीवन शैली को अपना कर व समय से नियमित स्वास्थ्य जांच करवाकर हार्ट की बीमारी को डायग्नोज़ कर सकते है जिससे उनका समुचित इलाज़ हो सके। कुछ आसान उपाय इस तरह से हैं :
1. सामान्यतः शरीर का वज़न बढ़ने से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। अधिक वज़न हो जाने से सोते समय श्वास में रुकावट पैदा करता है जिसे स्लीप ऐप्नीआ भी कहते है, यह भी ब्लड प्रेशर बढ़ाने का एक मुख्य कारण होता है। इसलिए शरीर का वज़न काम करने से ब्लड प्रेशर को नियंत्रितकिया जा सकता है। साथ ही कमर पर ज़्यादा चरबी जमा होने से भी ब्लड प्रेशर बढ़ने का रिस्क बढ़ जाता है।
2. महिलाये अक्सर ग्रह कार्य करके सोचती है कि उनकी कसरत तो होगयी अब क्या जरूरत परंतु नियमित शारीरिक गतिशीलता लगभग रोज़ाना 30 मिनट , हफ़्ते के अधिकतर दिन क़ायम रखने से हमारा ब्लड प्रेशर 4-9 mm Hg तक काम हो जाता है।अगर आप हायपर टेन्शन की प्रारम्भिक अवस्था में हैं , तो प्रतिदिन व्यायाम करने से हाइपर टेन्शन होने से बचा जा सकता है। सबसे अच्छी कसरत तेज़ क़दमो से चलना, जोगिंग, साइक्लिंग, तैराकी आदि हैं।
3. स्वस्थ आहार जिसने भरपूर मोटा अनाज, फल,सब्ज़ियाँ होने चाइए तथा वसा युक्त खाद्य कम मात्रा में होने चाइए। इस तरह के आहार से लगभग 14 mm Hg तक तक ब्लड प्रेशर काम किया जा सकता है।
4. आहार में नमक की मात्रा को नियंत्रित करकेब्लड प्रेशर को कम किया जा सकता है।सामान्यतः प्रतिदिन 5 ग्राम से कम तथा हाइपर टेंसिव मरीज़ों को प्रतिदिन 2ग्राम से कम मात्रा में नामक का उपयोग आहार में करना चाइए।
5. धूम्रपान हार्ट डिसीज़ को बढ़ादेता है अतः धूम्रपान को पूरी तरह बन्द कर के रिस्क कम किया जा सकता है।
6. लम्बे समय से चल रहा मानसिक अवसाद भी हाई ब्लड प्रेशर का एक प्रमुख कारण है। इसके लिए ज़रूरी है कि अवसाद की अवस्था से बचा जाए। 24 घंटो में से खुद के लिए 20-30 मिनट खुद के लिए भी निकालें। प्रतिदिन योग अभ्यास एवं गहरी श्वास की प्रक्रिया को दुहराना चाइए। साथ ही जीवन में स्ट्रेस को दूर रखे। खेल व मनोरंजन में रुचि बढ़ायें।
7. नियमित स्वास्थ्य जांच कराकर अपने चिकित्सक से समय पर परामर्श लें एवं बतायीं गयी दवाई बराबर लें।
8. प्रतिदिन कम से कम 8 घंटे की नींद अवश्य लें।
9.लक्षणों को नज़रअंदाज़ न करें। यदि आपको ऐसे किसी लक्षणों का अनुभव हो, जो नहीं होने चाहिए, तो आपके डॉक्टर से बात करें और स्वयं की संपूर्ण जांच कराएं।
डॉ हेमन्त चतुर्वेदी
वरिष्ठ ह्रदय रोग विशेषज्ञ
जयपुर
Published on:
14 May 2023 12:08 pm
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