
जयपुर. अगर सास कामकाजी है तो बहुओं को चिंता करने की जरूरत नहीं है। ऐसी बहुओं को काम करने की पूरी आजादी मिलेगी। खास बात यह है कि ऐसी महिलाओं की परेशानी और चुनौतियों को परिवार के सभी लोग समझते हैं और सहयोग करते हैं। इसके विपरीत जहां पुरुष वर्ग ही कामकाजी होता है उस परिवार की बहुओं को कॅरियर और परिवार को लेकर हमेशा तनाव का सामना करना पड़ता है। इस कारण अधिकांश बहुएं नौकरी छोड़ देती हैं। स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023 की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार महिला वर्किंग फॉर्स में पिछले कई सालों में बदलाव सामने आए हैं। कोरोना के बाद स्वरोजगार को चुनने वाली महिलाओं की संख्या 10 प्रतिशत तक बढ़ गई है, कोविड से पहले जहां 50 प्रतिशत महिलाएं स्वरोजगार थीं, वहीं अब यह दर बढ़कर 60 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
महिलाओं को पहचान देना बेहद जरूरी
झोटवाड़ा निवासी डॉ. सुमन गुप्ता हमेशा अपनी दोनों बहुओं को काम करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। वे पेशे से रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफेसर हैं और उनकी बहू चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। इस कारण वे काम की अहमियत बखूबी समझती हैं। उनका कहना है महिलाओं को अपनी एक पहचान बनाना बहुत जरुरी हैै। उनकी बहू नूपुर का कहना है कि उनके परिवार के सदस्यों ने हमेशा उसे काम करते रहने के लिए बढ़ावा दिया है।
सासू मां का असर
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि शहरी घरों में जहां सास कामकाजी हैं, वहां बहुओं के कामकाजी होने की संभावना 70 प्रतिशत अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में 50 फीसदी अधिक है। आज भी महिलाओं को शादी के बाद काम करने के लिए कई शर्तें लागू की जाती हैं। ऐसे में कामकाजी सास होने से उन घरों में महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने की संभावना बढ़ जाती है।
टॉपिक एक्सपर्ट
भाग्यश्री सैनी- महिला एवं बाल अधिकार कार्यकर्ता
आज भी महिलाओं को नौकरी करने या स्वरोजगार के लिए पुरुष या अन्य सदस्य की हां पर निर्भर रहना पड़ता है। महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता बेहद जरुरी है, ताकि वह दूसरी महिलाओं को प्रेरित कर सके। इसी से समाज आगे बढ़ेगा।
Published on:
04 Oct 2023 12:29 pm
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