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दो टूक… माय लॉर्ड! हर आदेश की पालना हो

जयपुर के बी2 बायपास चौराहे से वंदेमातरम रोड पर जो मंगलवार को हुआ, वह तो 7 साल पहले गोपालपुरा बायपास और उसके 5 साल पहले बरकतनगर बाजार में भी हो चुका है। नतीजा क्या निकला?

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Jaipur News

अमित वाजपेयी

जयपुर के बी2 बायपास चौराहे से वंदेमातरम रोड पर जो मंगलवार को हुआ, वह तो 7 साल पहले गोपालपुरा बायपास और उसके 5 साल पहले बरकतनगर बाजार में भी हो चुका है। नतीजा क्या निकला? स्थायी कब्जों की जगह अस्थायी अतिक्रमणों ने ले ली और समस्या फिर जस की तस बन गई।

अब जड़ उखाड़ने की जरूरत है। जड़ कोई पाताल में नहीं छिपी। बल्कि फूल-पत्तियों की तरह सबके सामने है। जड़ हैं नेता और अफसर… जब तक इन असली दोषियों की नींद नहीं ढहाई जाएगी, तब तक दुकान-मकान ढहाने का सिलसिला भी नहीं थमेगा। यह सही है कि जनता की राह सुगम होनी चाहिए। सड़क पर जिसका हक है, उसे पूरी सुविधा मिलनी चाहिए। लाखों लोगों की सुविधा बिसराकर सड़क पर चंद लोगों का कब्जा क्यों हो? लेकिन दोष अकेले इन चंद लोगों का नहीं है।

मुख्य दोषी वह नेता और अफसर हैं, जिन्होंने कब्जा होते समय आंखें मूंदे रखीं। जनता की शिकायतों, आक्रोश को अनदेखा कर अवैध निर्माण होने दिया। नेता वोटों के लालच में चुप रहे। अफसरों ने तब तक आंखें बंद और जेबें खुली रखीं, जब तक कि पानी सिर से नहीं गुजर गया। फिर अचानक एक दिन कोर्ट आदेश और भारी-भरकम मशीनरी लेकर पिल पड़े।

अब बड़ा सवाल यह कि क्या कोर्ट ने सिर्फ वंदेमातरम रोड से ही अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने तो अतिक्रमण हटाने के बहुतेरे आदेश दे रखे हैं, आखिर अफसर वहां बुलडोजर क्यों नहीं चलाते। दरअसल नेता और अफसरों के लिए कोर्ट का फैसला मायने नहीं रखता। मायने रखता है, लाभ-हानि का हिसाब। जमीनों की कीमत बढ़ानी है या वोटों के लिहाज से फायदा है तो कोर्ट के आदेश की हाथों-हाथ पालना हो जाएगी। अतिक्रमणकारियों से फायदा है तो आदेश को दफ्तर दाखिल कर दिया जाएगा। अफसोसजनक यह है कि कोर्ट आदेश देने के बाद उसकी पालना की निगरानी नहीं करता। कोर्ट के आदेश देकर इतिश्री करने की इस प्रक्रिया का फायदा नेता और अफसर उठा लेते हैं।

यदि ऐसा नहीं होता तो मजाल है कि मास्टर प्लान की पालना नहीं होती। हाईकोर्ट ने मास्टरप्लान को लेकर 12 जनवरी, 2017 को आदेश दिया। इसमें साफ कहा कि बहुमंजिला इमारतें कहां बनाई जाएं, राज्य सरकार इसके जोन तय करे। कॉलोनियों में रह रहे लोगों के जीवन पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पडऩा चाहिए। राज्य में आज तक यह आदेश लागू नहीं हो सका।

मास्टर प्लान में झालाना बायपास से अपेक्स सर्किल तक सड़क की चौड़ाई 200 फीट निर्धारित है, लेकिन मौके पर 100 फीट सडक़ ही उपलब्ध है। गंभीर यह है कि मास्टर प्लान को दरकिनार कर अफसरों ने यहां 200 फीट दायरे में ही 5-6 इमारतों के नक्शे पास कर दिए। तीन इमारत तो बन भी चुकी हैं। नगर निगम ने भी अपना भवन बना लिया। झालाना बायपास से अतिक्रमण हटाने की अफसरों की हिम्मत क्यों नहीं होती। पहले कालीचरण सराफ, अशोक परनामी, अरुण चतुर्वेदी का दखल बताकर अफसरों ने अतिक्रमण नहीं हटाए। अब रफीक खान और कालीचरण सराफ की आड़ लेकर कार्रवाई से बच रहे हैं।

हाईकोर्ट ने तो रामगढ़ मोड चौराहे से माउंट रोड को चौड़ा करने और सी स्कीम में सुभाष मार्ग की चौड़ाई 60 फीट करने का भी आदेश दे रखा है। वहां आज तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई। ऐसे ही बाइस गोदाम से सांगानेर आरओबी तक सड़क 100 फीट चौड़ी करने के आदेश हैं लेकिन जेडीए ने चहेतों के दबाव में सडक़ को 40 से 60 फीट पर सीमित कर दिया। कोर्ट ने मानसरोवर में मध्यम मार्ग पर कॉमर्शियल गतिविधि बंद करने के आदेश दिए, लेकिन अफसर पालना करने की बजाय स्टे आने का इंतजार करते रहे। इसी तरफ कोर्ट ने परकोटा क्षेत्र के बाजारों से अतिक्रमण हटाने के आदेश दे रखे हैं, लेकिन चारों ओर अतिक्रमण पसरा हुआ है। रेंगकर भी मुश्किल से वाहन निकल पाते हैं।

अन्तत: इस सबसे नुकसान तो जनता का ही हो रहा है। पहले संकरी सड़कों पर चलकर हादसों में जान-माल का नुकसान। फिर अचानक एक दिन अतिक्रमण हटाओ कार्रवाई पर लगने वाला पैसा भी उसी के खजाने से खर्च होगा।

ऐसे जिम्मेदारों को चिह्नित किया जाना चाहिए, जो अपनी आंखों के सामने अवैध कब्जे और अतिक्रमण होते देख रहे हैं, लेकिन करते कुछ नहीं। अब तक हुए अवैध निर्माणों के लिए जिम्मेदार एक-एक अफसर की जवाबदेही तय होनी चाहिए। साथ ही हर नुकसान की भरपाई इन्हीं जिम्मेदारों से की जाए। तभी लम्बी परेशानी और फिर भारी तबाही के इस सिलसिले से निजात मिल पाएगी। वरना फिर कुछ साल बाद भरे-पूरे किसी बाजार पर बुलडोजर चलाने पड़ेंगे।

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