किसानों का अब परम्परागत खेती से मोहभंग होता जा रहा है। वे अब लाभ के लिए नए प्रयोगों को भी प्राथमिकता दे रहे हंै और इसके सार्थक नतीजे भी अब सामने आ रहे हंै। शहर के समीप मूंगथला के किसानों को भी गेंदे के फूलों की खेती रास आने लगी है।
किसानों का अब परम्परागत खेती से मोहभंग होता जा रहा है। वे अब लाभ के लिए नए प्रयोगों को भी प्राथमिकता दे रहे हंै और इसके सार्थक नतीजे भी अब सामने आ रहे हंै। शहर के समीप मूंगथला के किसानों को भी गेंदे के फूलों की खेती रास आने लगी है।
किसानों को गेंदा फूलों की खेती में मुनाफा हाथ लग गया है। मंदिर, त्योहारों पर प्रतिष्ठानों या घरों की सजावट हो या फिर वैवाहिक कार्यक्रम सभी जगह गेंदे के फूलों की डिमांड है। सर्दियों के मौसम खेती के लिए सबसे अच्छा है।
यह ऐसा व्यवसाय है जिससे सालभर कमाई हो सकती है। इसके कारण फूलों की खेती जिले में तेजी से अपने पांव पसार रही है। कारण यह कि इसमें भी कम लागत में अधिक मुनाफा मिलने की गारंटी ज्यादातर बनी रहती है।
जिले में ऐसे भी किसान की ओर से तैयार किए गए गेंदे के फूलों की खपत स्थानीय बाजार में न हो पाने के कारण उन्हें गुजरात एवं अन्य शहरों की मंडी में भेजना पड़ता है।
अब लाभ की खेती पर ही जोर
परंपरागत खेती तक ही सीमित रहना अब गुजरे दिनों की बात हो गई है। जिले में धान गेहूं, मटर व सरसों की परंपरागत खेती के बाद किसानों का रुख फूल, टमाटर, रेडलेडी पपीता, शिमला मिर्च, सौंफ की बुवाई पर है।
यहीं के भावेश माली व नरपतसिंह ने बताया कि फूलों की खेती साल दो साल से कर रहे है। उन्होंने अपने खेत के तीन बीघा में गेंदे के 10 किलो बीज डाले थे। वर्षभर में दो बार गेंदे की कटिंग की जाती है। जिससे उत्पादन बढ़ सके।
लगभर चार माह तक यह फूल देती है। इसकी बुवाई सितम्बर माह में की गई थी। इससे एक दो दिन में करीब दस क्विटल फूल उतरते है। यह एक हजार रुपए तक आय दे देती है।
तीन माह में तैयार होती है फसल
शंकरलाल कीर बताता है गेंदा की फसल ढाई से तीन माह में तैयार हो जाती है। इस फसल से लगभर ढेड दो महीने पर फूल प्राप्त हो जाते है। इस फूलवारी को बोने के लिए तीन बीघे में पांच हजार खर्च आया था। अब दो चार दिन में एक हजार की कमाई हो रही है।
इस फसल को मात्र दो तीन बार सिंचाई करने से ही खेती लहलहाने लगती है। जबकि पैदावार ढाई से तीन क्विंटल तक प्रति बीघा जाती है। गेंदा फूल बाजार 60 से 70 रुपये प्रतिकिलो तक बिक जाता है। त्योहारों और वैवाहिक धार्मिक अनुष्ठानों में इसकी मांग बढ़ जाती है तो दाम 100 रुपये प्रतिकिलो तक हो जाती है।