मुनि तरुण सागर के प्रवचन सुनने के लिए सभी धर्मों और सम्प्रदाय के लोग आते थे। 36 वर्ष की उम्र तक ही उन्होंने तीन दर्जन से अधिक किताबें लिख दी थीं। मुनि सिर्फ जैन धर्म और महावीर पर ही नहीं बोलते थे, बल्कि गीता, रामायण से लेकर कबीर, पतंजलि, गुरुनानक, बुद्ध, विवेकानन्द और ओशो को भी अपने प्रवचनों में शामिल करते थे।
नेताओं पर कसा था तंज
एक बार जयपुर यात्रा के दौरान नेताओं पर तंज कसते हुए मुनि तरुण सागर ने कहा था कि जनता 4 साल तक नेताओं का ख्याल रखती है, लेकिन नेता केवल चुनावी साल में जनता का ख्याल रखते हैं। उन्होंने कहा था कि जो नेता किसी तरह की सजा भुगत चुके हैं, उनके चुनाव लडऩे पर आजीवन प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
योग्यता के आधार पर आरक्षण के पक्षधर
मुनि तरुण सागर योग्यता के आधार पर आरक्षण दिए जाने के पक्षधर थे। उनका मानना था कि आरक्षण के कारण देश पिछड़ रहा है। यह जाति नहीं बल्कि योग्यता और प्रतिभा के आधार पर मिलना चाहिए। आरक्षण की केवल 4 श्रेणियां होनी चाहिए। पहला आर्थिक आधार पर, चाहे जाति-धर्म कोई भी हो। शेष तीन श्रेणियों में दिव्यांग, अनाथ, शहीदों के बच्चे शामिल हों।
मुनि तरुण सागर योग्यता के आधार पर आरक्षण दिए जाने के पक्षधर थे। उनका मानना था कि आरक्षण के कारण देश पिछड़ रहा है। यह जाति नहीं बल्कि योग्यता और प्रतिभा के आधार पर मिलना चाहिए। आरक्षण की केवल 4 श्रेणियां होनी चाहिए। पहला आर्थिक आधार पर, चाहे जाति-धर्म कोई भी हो। शेष तीन श्रेणियों में दिव्यांग, अनाथ, शहीदों के बच्चे शामिल हों।
युवाओं को दी थी नसीहत
उन्होंने युवाओं को नसीहत देते हुए कहा था कि आज सब मोबाइल के टच में बिजी हैं, परिवार में एक-दूसरे से कोई टच नहीं है। युवाओं को परिवार के पास बैठकर संस्कारों का ज्ञान लेना चाहिए। मुनि ने कहा था कि भारत में विकास देखना है तो शहरों को और विश्वास देखना है तो गांवों को देखें। यहां विश्वास गांवों में बसता और विकास शहरों में। गांव में लोग गाय पालते और श्वान को दुत्कारते हैं जबकि शहर में इसका उलटा होता है।
उन्होंने युवाओं को नसीहत देते हुए कहा था कि आज सब मोबाइल के टच में बिजी हैं, परिवार में एक-दूसरे से कोई टच नहीं है। युवाओं को परिवार के पास बैठकर संस्कारों का ज्ञान लेना चाहिए। मुनि ने कहा था कि भारत में विकास देखना है तो शहरों को और विश्वास देखना है तो गांवों को देखें। यहां विश्वास गांवों में बसता और विकास शहरों में। गांव में लोग गाय पालते और श्वान को दुत्कारते हैं जबकि शहर में इसका उलटा होता है।