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आचार्य पुष्पदंतसागर का हुआ था विरोध, 13 साल की उम्र में दी थी दीक्षा

locationजयपुरPublished: Sep 01, 2018 04:40:53 pm

Submitted by:

Mridula Sharma

मुनि तरुण सागर का देवलोक गमन

jaipur

आचार्य पुष्पदंतसागर का हुआ था विरोध, 13 साल की उम्र में दी थी दीक्षा

जयपुर. पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे जैन मुनि तरुण सागरजी का शनिवार को देवलोक गमन हो गया। मुनि तरुण सागर के निधन पर देश-विदेश में मौजूद उनके श्रद्धालु और अनुयायी शोक में डूबे हुए हैं। मुनि तरुण सागर अपने बेबाक बोल के लिए पहचाने जाते थे। महज 13 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने वाले मुनि को उनके अनुयायी क्रांतिकारी संत कहा करते थे। एक लेख के अनुसार जब 13 वर्ष की उम्र में मुनि तरुण सागर को आचार्य पुष्पदंतसागर ने दीक्षा देने का फैसला किया था तो इसके लिए उनका काफी विरोध किया गया था। संघ और समाज के लोगों ने आचार्य के फैसले पर सवाल उठाए थे, उनका मानना था कि छोटी उम्र में किशोर मुनि कठोर साधना कैसे निभा पाएंगे। लेकिन मुनि तरुण सागर ने सबको गलत साबित करते हुए दीक्षा ली और कठोर साधना भी की।
मुनि तरुण सागर के प्रवचन सुनने के लिए सभी धर्मों और सम्प्रदाय के लोग आते थे। 36 वर्ष की उम्र तक ही उन्होंने तीन दर्जन से अधिक किताबें लिख दी थीं। मुनि सिर्फ जैन धर्म और महावीर पर ही नहीं बोलते थे, बल्कि गीता, रामायण से लेकर कबीर, पतंजलि, गुरुनानक, बुद्ध, विवेकानन्द और ओशो को भी अपने प्रवचनों में शामिल करते थे।

नेताओं पर कसा था तंज
एक बार जयपुर यात्रा के दौरान नेताओं पर तंज कसते हुए मुनि तरुण सागर ने कहा था कि जनता 4 साल तक नेताओं का ख्याल रखती है, लेकिन नेता केवल चुनावी साल में जनता का ख्याल रखते हैं। उन्होंने कहा था कि जो नेता किसी तरह की सजा भुगत चुके हैं, उनके चुनाव लडऩे पर आजीवन प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
योग्यता के आधार पर आरक्षण के पक्षधर
मुनि तरुण सागर योग्यता के आधार पर आरक्षण दिए जाने के पक्षधर थे। उनका मानना था कि आरक्षण के कारण देश पिछड़ रहा है। यह जाति नहीं बल्कि योग्यता और प्रतिभा के आधार पर मिलना चाहिए। आरक्षण की केवल 4 श्रेणियां होनी चाहिए। पहला आर्थिक आधार पर, चाहे जाति-धर्म कोई भी हो। शेष तीन श्रेणियों में दिव्यांग, अनाथ, शहीदों के बच्चे शामिल हों।
युवाओं को दी थी नसीहत
उन्होंने युवाओं को नसीहत देते हुए कहा था कि आज सब मोबाइल के टच में बिजी हैं, परिवार में एक-दूसरे से कोई टच नहीं है। युवाओं को परिवार के पास बैठकर संस्कारों का ज्ञान लेना चाहिए। मुनि ने कहा था कि भारत में विकास देखना है तो शहरों को और विश्वास देखना है तो गांवों को देखें। यहां विश्वास गांवों में बसता और विकास शहरों में। गांव में लोग गाय पालते और श्वान को दुत्कारते हैं जबकि शहर में इसका उलटा होता है।

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