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निगम ही नहीं, जेडीए के पार्कों को भी आॅक्सीजन का इंतजार

—मुख्य पार्कों को छोड़ छोटे पार्कों की स्थिति भी ठीक नहीं —15 फीसदी के भुगतान का विवाद है मुख्य वजह  

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जयपुर। राजधानी में पार्कों के रख—रखाव को लेकर विवाद बना हुआ है।
मामला नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल तक पहुंच चुका है। पहले दोनों महापौर मंत्री से मिलीं और उसके बाद जेडीए के अधिकारियों को मंत्री ने बुलाया। अब मंत्री ने ग्रेटर निगम आयुक्त से स्पष्टीकरण मांग लिया है।
इस विवाद के बीच पत्रिका की टीम ने जेडीए के पार्कों की स्थिति को देखा। कई पार्क ऐसे मिले, जिनको आॅक्सीजन की जरूरत थी। कहीं घास नहीं दिखी और कहीं पेड़—पौधों की छटाई तक नहीं हो पा रही है। बड़े पार्कों में जेडीए जरूर बेहतर तरीके से काम कर रहा है।
दरअसल, इस विवाद के पीछे 15 फीसदी वह राशि है, जिसकी मांग लम्बे समय से ग्रेटर नगर निगम आयुक्त की ओर से की जा रही है। नीलामी के भूखंडों की राशि में से राजस्थान आवासन मंडल और जेडीए को निगम को देने का नियम है। यह राशि निगम को नहीं मिल रही है।

जेडीए: 150 पार्कों को संवार रहा
जेडीए इनमें छह से सात करोड़ रुपए सालाना खर्च करता है। करीब 70 हैक्टेयर जमीन में ये पार्क बने हुए हैं। लेकिन, सेंट्रल पार्क जैसी हरियाली और रख—रखाव किसी दूसरे पार्क में नजर नहीं आता है। वैशाली नगर में जेडीए जिन पार्कों का संधारण कर रहा है, उनकी स्थिति ठीक नहीं है। विद्याधर नगर में भी ऐसी ही स्थिति है। जेडीए में जो बीएसआर लागू हैं, उस लिहाज से 25 हजार रुपए प्रति हैक्टेयर प्रति माह की दर से खर्च किया जा रहा है।


निगम: 1015 पार्कों का जिम्मा, अधिकतर छोटे
निगम इनके रखरखाव में 17 से 18 करोड़ रुपए खर्च करता है। दोनों निगमों में 1015 पार्क हैं और इनका क्षेत्रफल जेडीए के पार्कों की तुलना में ढाई से तीन गुना तक है।
हाल ही में उद्यान समिति की अध्यक्ष राखी राठौड़ ने इनमें ग्रेटर निगम के करीब 300 पार्कों का औचक निरीक्षण किया था 80 फीसदी से अधिक पार्कों की स्थिति ठीक मिली थी। निगम में सार्वजनिक निर्माण विभाग की बीएसआर लागू है। ऐसे में निगम करीब 39 हजार रुपए प्रति हैक्टेयर प्रति माह खर्च करता है।


इसलिए निगम का ज्यादा होता खर्चा
—छोटे पार्क होने की वजह से संसाधन ज्यादा जुटाने पड़ते हैं। रख—रखाव के लिए माली आदि की अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ती है। पानी के लिए बोरिंग और बिजली कनेक्शन भी ज्यादा लेने होते हैं।
—मौजूदा स्थिति की बात करें तो जेडीए में अभी जो दर निर्धारित की है, उससे कम पर संवेदक काम कर रहे हैं और निगम में निर्धारित दर से ज्यादा पर संवेदक काम कर रहे हैं।
—जानकारों की मानें कई वर्ष पहले निगम ने जेडीए की बीएसआर लागू की थी, लेकिन उससे पार्कों का रख—रखाव सही तरह से नहीं हो पाया था।


निगम के बड़े पार्कों को जेडीए को देने का विचार था। लेकिन, दोनों महापौर ने जेडीए के पार्कों की स्थिति के बारे में बताया। जो फोटो दिखाए, उनमें पार्कों की स्थिति अच्छी नहीं थी। जेडीए के पार्कों को दुरस्त करने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं। जानकारी में आया कि निगम में जेडीए से ज्यादा खर्चा पार्कों के रखरखाव में किया जा रहा है। इसका ग्रेटर निगम आयुक्त से स्पष्टीकरण मांगा है।
—शांति धारीवाल, नगरीय विकास मंत्री