
जेडीए। पत्रिका फाइल फोटो
जयपुर। आवासन मंडल की अवाप्तशुदा बेशकीमती जमीन के नियमन के खेल में जयपुर विकास प्राधिकरण की भूमिका भी रही है। नियमन से जुड़े दस्तावेजों की पड़ताल में खुलासा हुआ कि जेडीए नेे कब्जाधारियों को पट्टे देने के लिए आवासन मण्डल से ही एनओसी मांगी थी। इसमें मुख्य रूप से टोंक रोड और बी2 बायपास के कार्नर की अरबों की बेशकीमती जमीन है। कब्जेधारियों को गृह निर्माण सहकारी समिति ने पट्टे जारी किए थे।
इसके बाद जमीन पर कब्जा, सोसायटी के पट्टों को आधार और कोर्ट आदेश की आड़ में जेडीए ने नियमन का रास्ता निकाल लिया था। यह मामला वर्ष 2019 का है। आवासन मण्डल ने तब सवाल उठाया था कि जब जमीन आवासन मण्डल की है तो जेडीए कैसे नियमन कर सकता है?
सूत्रों के मुताबिक इस बीच मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो जेडीए अधिकारियों की नींद उड़ी और वे बैकफुट पर आ गए। नियमितीकरण के निर्णय को वापस लेने के लिए कोर्ट में अंडरटेकिंग देनी पड़ी। तत्कालीन आवासन मण्डल आयुक्त पवन अरोड़ा ने पट्टे जारी करने वाली जवाहर गृह निर्माण सहकारी समिति के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाई।
1. आवासन मंडल और जेडीए के बीच जमीन के नियमन को लेकर विवाद चला। मामला तब शुरू हुआ जब जेडीए ने 31 मई 1996 को एक विज्ञप्ति जारी कर कॉलोनी के नियमन की प्रक्रिया के लिए एनओसी मांगी और फिर वापस ले लिया। इसके खिलाफ सोसायटी के सदस्य हाइकोर्ट पहुंचे।
2. कोर्ट ने वर्ष 2002 में निर्देशित किया कि याचिकाकर्ताओं भूमि के पट्टे जारी करें। इस आदेश के खिलाफ आवासन मंडल ने अपील की, लेकिन दो बार खारिज कर दी गई।
3. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाते हुए, नए निर्माण पर रोक लगाई। साथ ही निर्माण सामग्री की वीडियोग्राफी कर सुरक्षित रखने के निर्देश दिए।
Updated on:
29 Oct 2025 07:32 am
Published on:
29 Oct 2025 07:31 am
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