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जयपुर में कोरोना ने तोड़ी 445 सालों की परंपरा, पहली बार सेवक जुगलजी महाराज की शर्त नहीं कर सके पूरी…

जयपुर में कोरोना ने तोड़ी 445 कोरोना ( Coronavirus In Rajasthan ) ने 445 सालों की परंपरा को तोड़ दिया है। पहली बार यहां जुगलजी महाराज ( Shree Jugal Darbar Mandir Bagru ) विहार नहीं कर पाए है। लॉकडाउन में जुगलजी महाराज भी विहार के लिए बाहर नहीं निकले। इसके चलते वर्षों पुराना मेला ( Jugal Durbar Fair ) भी नहीं भर पाया। की परंपरा, पहली बार जुगलजी महाराज की शर्त नहीं कर सके पूरी...

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जयपुर

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Abdul Bari

Apr 15, 2020

Shree Jugal Darbar Mandir, Jugal Durbar Mela

Shree Jugal Darbar Mandir, Jugal Durbar Mela

गिर्राज शर्मा/जयपुर।
कोरोना ( coronavirus In Rajasthan ) ने 445 सालों की परंपरा को तोड़ दिया है। राजस्थान की राजधानी जयपुर के नजदीक बगरू में यह परंपरा टूटी है, पहली बार यहां जुगलजी महाराज ( Shree Jugal Darbar Mandir Bagru ) विहार नहीं कर पाए है। कोरोना के चलते किए गए लॉकडाउन में जुगलजी महाराज भी विहार के लिए बाहर नहीं निकले। इसके चलते वर्षों पुराना मेला ( Jugal Durbar Fair ) भी नहीं भर पाया। जिस मेले का ग्रामीणों के साथ लाखों लोगों को सालभर से इंतजार रहता है, वे जुगलजी महाराज का जलेबी का भोग भी नहीं लगा पाए। इसी भोग के चलते आस-पास के गांवों तक जलेबी की महक फैलती थी, इस बार कोरोना के चलते कुछ नहीं हो पाया।

मंदिर के पुजारी मोहन पंडा ने बताया कि संवत 1632 में मुगलों के शासन से बचते-बचाते मथुरा-वृंदावन से श्रीकृष्ण भगवान जुगल रूप में बगरू आए और एक बाग में विराजमान हुए। कुछ सालों बाद चैत्र पूर्णिमा को वर्तमान मंदिर की जगह एक मंदिर तैयार किया गया, जहां जुगलजी महाराज को विराजमान कराया गया। तभी से यहां चैत्र पूर्णिमा को तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता आया है। तीन दिन तक हजारों लोग बगरू में रहते थे। इस बार लॉकडाउन के चलते जुगलजी महाराज मंदिर से बाहर ही नहीं निकल पाए, जिसके चलते न विहार की परंपरा निभाई गई और ना ही मेला भर पाया।

त्रेता व द्वापर के भगवान विराजे हैं एक साथ

मंदिर पुजारी ने बताया कि पहले यहां श्रीकृष्ण जुगल रूप में ही विराजमान हुए। करीब 240 वर्ष पूर्व यहां के राजपुरोहित के यहां से सीतारामजी की मूर्ति आई। राजपुरोहित के कोई संतान नहीं होने से वे मूर्ति को सेवा पूजा के लिए यहां ले आए। उस समय राधाजी की भी प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई। ऐसे में तब से यहां त्रेता युग और द्वापर युग के भगवान यानी श्रीराम-सीता और श्रीकृष्ण-राधा एक साथ विराजमान है।

जलेबी की लगती करीब 50 दुकानें

जुगल दरबार मंदिर के पुजारी मोहन पंडा ने बताया कि जुगलजी महाराज को जलेबी का भोग लगाने की परंपरा चली आई है। इसी के कारण हर साल मेले में यहां करीब 50 दुकानें केवल जलेबी की ही लगती थी और एक-एक दुकान पर करीब 3 से 4 बोरी चीनी लगती थी। मेले में जयपुर के आस-पास के करीब 70 किलोमीटर तक गांवों के लोगों के साथ जयपुर, अजमेर, सीकर, टोंक आदि जिलों से भी लोग पहुंचते थे।

जुगलजी महाराज ने रखी शर्त

मंदिर पुजारी पंडा ने बताया कि जुगलजी महाराज अपने सेवकों से बात करते थे, उस समय जुगलजी महाराज ने वर्तमान मंदिर में आने के लिए शर्त रख दी कि उन्हें मंदिर से बाग तक हर साल पूर्णिमा को विहार कराया जाए। तब से हर साल जुगलजी महाराज को मंदिर से बाग जो वर्तमान में सरकारी स्कूल तक विहार कराया जाता रहा है।

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