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कल्याण सिंह का निधन, उपचुनाव की संभावना कम, अंतिम निर्णय लेगा चुनाव आयोग

नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह का निधन होने के बाद भी उनकी सीट पर उपचुनाव होगा या नहीं। इस पर संशय खड़ा हो गया है।

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Kalyan Singh chauhan

जयपुर। नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह का निधन होने के बाद भी उनकी सीट पर उपचुनाव होगा या नहीं। इस पर संशय खड़ा हो गया है। निर्वाचन विभाग के उप निर्वाचन अधिकारी विनोद पारीक के मुताबिक जहां चुनाव में एक साल से भी कम समय बच जाता है, वहां उपचुनाव नहीं होता।

एेसे में राजसमंद सीट पर उपचुनाव होने की संभावना नहीं है। अब अंतिम निर्णय के लिए फाइल चुनाव आयोग को भेजी जाएगी। यदि आयोग चाहेगा तो छह माह के नियमों के मुताबिक चुनाव भी करवा सकता है, लेकिन एेसा संभव नजर नहीं आ रहा। राजस्थान में इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। एेसे में माना यही जा रहा है कि राजसमंद सीट पर उपचुनाव नहीं होंगे।

सदन की कार्यवाही स्थगित
नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह के निधन के चलते बुधवार को विधानसभा में सदन की कार्यवाही एक दिन के लिए स्थगित कर दी गई। सदन की शुरुआत में दो मिनट का मौन रखकर विधायकों ने कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि दी।

मुख्यमंत्री ने जताई संवेदना
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विधायक कल्याण सिंह चौहान के निधन पर शोक व्यक्त किया है। राजे ने अपने संवेदना संदेश में कहा कि चौहान एक सजग जनप्रतिनिधि थे। उन्होंने हमेशा गरीबों, पिछड़ों सहित समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए आवाज उठाई। उनका निधन सभी के लिए अपूरणीय क्षति है।

विधायक चौहान का निधन
नाथद्वारा से 14वीं विधानसभा में लगातार दूसरी बार विधायक रहे कल्याण सिंह चौहान का मंगलवार देर रात्रि निधन हो गया। विधायक चौहान पिछले दो साल से भोजन की नली में कैंसर से पीडि़त चल रहे थे। चौहान ने 13वीं विधानसभा के चुनाव में अपने राजनीतिक गुरु और तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी को एक मत से पराजित कर सुर्खियों में आए थे।

विधायक कल्याण सिंह चौहान ने वर्ष 2003 में कांग्रेस छोड़ भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। हालांकि उन्होंने राजनीति में उन्हें जो स्थान मिला उसमें डॉ. सीपी जोशी का बड़ा हाथ माना जाता रहा। विधायक चौहान ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत सरपंच पद से की। इसके बाद वे खमनोर पंचायत समित के प्रधान एवं बाद में जिला परिषद सदस्य बनकर राजसमंद के उपजिला प्रमुख बने। वर्ष 2003 में भाजपा का दामन थामने के बाद वे पहली बार 2008 में विधायक का चुनाव लड़े और एक मत से चुनाव जीते।