खान ने कहा कि कश्मीर मे जो 1988 से जो चल रहा है, वह साधारण आतंकवाद नहीं बल्कि प्रॉक्सीवार है। इसका उदाहरण जनरल जिया उल हक का पाकिस्तान की सेना को दिया गया भाषण है। इसमें हक ने कहा था कि हम भारत से परम्परागत युद्ध में नहीं जीत सकते, इसलिए हमें भारत के सीने पर इतने घाव करने है कि वहां खून ही खून बह जाए। इसके लिए ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया गया और यह वहीं प्रॉक्सीवार है। ऐसे में मौजूदा सरकार ने कश्मीर पर जो फैसला किया है उसकी जितनी तारीफ की जाए, वह कम है।
खान ने कहा कि कश्मीर के लोग 1947 में ही भारत के साथ जुडऩे का फैसला कर चुके है। अब धारा 370 हटने के बाद भ्रम फैलाया जा रहा है कि इससे कश्मीरियों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जबकि हकीकत में यह फैसला कश्मीर की आम जनता को मजबूत करेगा। धारा 370 ही नहीं किसी भी तरह का विशेष प्रावधान सिर्फ ताकतवार लोगो को ही फायदा देता है।
खान ने कहा कि पाकिस्तान को कश्मीर से कोई मतलब नहीं है। वहां की सेना अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए इस मुददे को जिंदा रखना चाहती है। भारत एक विचार है और कश्मीर के बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सरकार ने अपना काम कर दिया है, अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम कश्मीरियों को यह भरोसा दिलाएं कि वे हमारे ही लोग है।
प्रतिष्ठान के संयोजक पूर्व सांसद डॉ महेश चंद्र शर्मा ने प्रारंभ में विषय की प्रस्ताव रखी और कहा कि धारा 370 का उस समय जबर्दस्त विरोध हुआ था। यह धारा 370 एकमात्र ऐसी धारा थी कि जिस पर संविधान सभा में कोई बहस नहीं हुई, क्योंकि इसे अस्थाई धारा के रूप में स्वीकार किया गया था। संविधान बनाने वाले डॉ. अम्बेडकर ने इस धारा रखने से मना कर दिया था।