
kissa kile ka- sonar fort jaisalmer history in hindi
जैसलमेर/जयपुर। जैसलमेर राजस्थान के सबसे ख़ूबसूरत शहरों में से एक है। थार मरुस्थल के कारण इसे पर्यटन का सबसे आकर्षक स्थल माना जाता है। जैसलमेर का ये गौरवशाली दुर्ग त्रिभुजाकार पहाड़ी त्रिकूट पर स्थित हैं। किले की सुरक्षा के लिए भी बहुत ही उत्तम व्यवस्था की गई है। किले के चारों ओर परकोटे पर तीस-तीस फीट ऊँची 99 बुर्जियां बनी हैं, जो इसकी सुरक्षा को और पुख्ता करती हैं। जैसलमेर दुर्ग और इसमें स्थित सैंकड़ों आवासीय भवन पीले पत्थरों से निर्मित हैं। जब सूर्य की पहली किरण इस पर पड़ती है, तब पूरा दुर्ग स्वर्णिम आभा बिखेरता है। इसलिए किले को सोनार क़िला या गोल्डन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है।
किले में हैं जैन मंदिर
अन्य वैष्णव मंदिरों के अलावा किले में कई जैन मंदिर हैं, जो स्थापत्य एवं शिल्प कला के बेजोड़ नमूने हैं। जैन मंदिर के तहखाने में "जिन भद्र सूरि ज्ञान भण्डार" बना हुआ है। जिन भद्रसूरि ज्ञान भण्डार प्राचीन ताड़ पत्रों व कागजी पुस्तकों एवं ग्रंथों के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है। यहां कई प्राचीन ग्रंथों के भण्डार भी आपको मिलेंगे...जो संस्कृत, मगधी, पालि, गुजराती, मालवी, डिंगल व अन्य कई भाषाओं में विभिन्न विषयों पर लिखे गए हैं।
आधी से ज्यादा आबादी को समेटे है खुद में
जैसलमेर का क़िला 1156 ई. में बना था। जैसलमेर का किला सथापत्य का सजीव केंद्र है। इसमें बारह सौ घर हैं।
जैसलमेर क़िले की अपनी खासियत है। ढाई सौ फुट की ऊँचाई वाला यह किला तीस फुट ऊंची प्राचीरों से घिरा है। यहां ये बात गौर करने वाली है कि जैसलमेर की अधिकतर आबादी इसी किले की चारदीवारी के अंदर बसी है।
यूं हुआ निर्माण
जैसलमेर के किले का निर्माण 1156 में हुआ और आपको बता दें कि ये राजस्थान का दूसरा सबसे पुराना किला है। ढाई सौ फीट ऊंचा और सेंट स्टोन के विशाल खण्डों से निर्मित 30 फीट ऊंची दीवार वाले इस किले में 99 प्राचीर हैं। इन 99 प्रचाीरों में से 92 प्राचीरों का निर्माण 1633 से 1647 के बीच कराया गया। किले के अंदर मौजूद कुंए पानी का निरंतर स्रोत प्रदान करते हैं। कहा जा सकता है कि रेगिस्तान के इन दुर्गों में भी, जहां पानी की कमी थी, वाटर मैनेजमेंट की अच्छी व्यवस्था के कारण पानी की सुलभता रहा करती थी। रावल जैसल द्वारा निर्मित इस दुर्ग में संकरी गलियां और चार विशाल प्रवेश द्वार हैं। इनमें से अंतिम द्वार मुख्य चौक की ओर जाता है जिस पर महाराज का पुराना महल है। कस्बे की लगभग एक चौथाई आबादी इसी क़िले के अंदर निवास करती है। यहां गणेश पोल, सूरज पोल, भूत पोल और हवा पोल के जरिए पहुंचा जा सकता है। यहां अनेक सुंदर हवेलियां और जैन मंदिरों के समूह हैं जो 12वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बनवाए गए थे।
कई हमले झेले
सोनार दुर्ग ही वह दुर्ग है, जिसने कई हमले झेले। 11वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक किले पर गौरी, खिलजी, फिरोजशाह तुगलक और ऐसे ही दूसरे मुगलों ने भीषण हमले किए। इस किले से एक समय में सिंधु, मिस्र, इराक, कांधार और मुलतान जैसे देशों को यहीं से सामान भेजा जाता था और मंगवाया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि 1661 से 1708 ई. के बीच यह दुर्ग नगर समृद्धि के चरम शिखर पर पहुंच गया। व्यापारियों ने यहां स्थापत्य कला में बेजोड़ हवेलियों का निर्माण कराया तो हिन्दू, जैन धर्म के मंदिरों की आस्था का भी यह प्रमुख केंद्र बना।
महाभारत काल से भी जुड़ी है याद
कहते हैं कि महाभारत काल में जब युद्ध समाप्त हो गया और भगवान कृष्ण अर्जुन के साथ द्वारिका की ओर चले, तब इसी नगर से कभी उनका रथ गुजरा था। लोक किंवदंती यह भी कहती है कि रेगिस्तान के बीचोबीच यहां की त्रिकुट पहाड़ी पर कभी महर्षि उत्तुंग ने भी तपस्या की थी।
Published on:
24 Jul 2018 04:43 pm
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