
नूपुर शर्मा
जयपुर।
नवरात्रि के नौ दिनों में हर दिन मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है। इसी तरह नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। नवरातत्रों में ब्रह्मचारिणी माँ की दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या (आत्मसंयम करने वाला) और चारिणी का अर्थ है आचरण (अनुपालन , अच्छा व्यवहार करने वाला)। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली (तपस्या करने वाली)। इस रूप में माता अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाली है। इनकी उपासना करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उनका मन कर्तव्य पथ से विचलित (भटकता) नहीं होता है।
माँ ब्रह्मचारिणी शिव से विवाह करने की कहानी
नवदुर्गा में दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी दुर्गा मां का महत्व और शक्तियां अनंत हैं। माता पार्वती को ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। पिछले जन्म में, इस देवी ने हिमालय में एक सामान्य घर की बेटी के रूप में जन्म लिया था। वह बचपन से ही भगवान शिव की महिमा सुनकर बड़ी हुई और फिर भगवान शंकर से विवाह करने पर जोर दिया। फिर एक बार नारद मुनी जी से बात करने के बाद उन्होंने भगवान महादेव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या करने का विचार किया।
मां ने भूखे रहकर तपस्या की
इस कठिन तपस्या के कारण उन्हें तपश्चारिणी यानि ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। घोर तपस्या करने के बाद भी भगवान प्रसन्न नहीं हुए, फिर उन्होंने केवल फल और फूल खाकर एक हजार साल बिताए और सौ साल केवल जमीन पर रहकर और शाक (वनस्पति, जड़ी-बूटियों) पर निर्वाह किया। कुछ दिनों के लिए कठोर उपवास रखें और खुले आसमान के नीचे तेज बारिश और धूप का सामना किया । तीन हजार वर्षों तक, उन्हों में टूटे हुए बिल्व पत्ते खाए और भगवान शिव की पूजा की। इसके बाद उन्होंने सूखे बिल्वपत्र का खाना भी बंद कर दिया। उन्होंने कई हजार वर्षों तक निर्जल और भूखे रहकर तपस्या की। खाने के लिए पत्ते छोड़ने के कारण उनका नाम अपर्णा पड़ा।
घोर तप से महादेव हुए प्रसन्न
कठोर तपस्या के कारण देवी का शरीर पूरी तरह से क्षीण हो गया था। देवताओं, सिद्धों और ऋषियों ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को एक अभूतपूर्व पुण्य कार्य बताया, प्रशंसा की और कहा, "हे देवी, आज तक किसी ने भी इतनी कठोर तपस्या नहीं की है। यह केवल आप से ही संभव था। आपकी मनोकामना पूर्ण होगी और आपको चंद्रमौली के नाम से भगवान शिव अपने पति के रूप में प्राप्त होंगे।
माँ ब्रह्मचारिणी की विशेष बातें
मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उन्हें हर जगह सफलता और जीत की देवी माना जाता है। यह दिन योगियों के लिए कृपा और भक्ति का सर्वश्रेष्ठ दिन माना जाता है। इस दिन ऐसी कन्याओं की पूजा की जाती है। जिनकी शादी तय हो गई है, उन्हें घर बुलाकर पूजा की जाती है और प्रसाद ग्रहण करने के बाद वस्त्र और बर्तन भेंट के रूप में दिए जाते हैं।
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माँ जीवन और स्मरणशक्ति को बढ़ाती है, रक्त विकारों को नष्ट करती है और वाणी को मधुर बनाती है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। देवी ब्रह्मचारिणी वास्तविक ब्रह्मा की अवतार हैं। यह देवी दुर्गा, शिवस्वरूप, गणेशजननी, नारायणी, विष्णुमाया और पूर्ण ब्रह्मस्वरुपिनी नामों से प्रसिद्ध है।
माँ ब्रह्मचारिणी का प्रसिद्ध मंदिर
माँ ब्रह्मचारिणी का मंदिर काशी के सप्तसागर क्षेत्र में स्थित है, ब्रह्मचारिणी देवी का रूप पूरी तरह से चमकदार और बहुत भव्य है। उनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। जो देवी के इस रूप की पूजा करता है वह सर्वोच्च ब्रह्म को प्राप्त करता है। मां के दर्शन मात्र से ही भक्त को यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
डिस्केलमर - यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित है पत्रिका इस बारे में कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।
Updated on:
27 Sept 2022 12:30 pm
Published on:
27 Sept 2022 12:24 pm
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