
जयपुर। हरमाड़ा के चारण विद्वानों का उनकी विद्वता के कारण ढूंढाड़ रियासत में विशिष्ट सम्मान रहा। आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने कवि भगवानदास बारेठ को हरमाड़ा सहित कई गावों का जागीरदार बनाया था। भगवानदास ने शहजादा खुर्रम और मेवाड़ महाराणा के बीच मध्यस्थता की थी। शाहजहां ने सलाह के लिए भगवानदास बारेठ को दिल्ली भी बुलाया। कहते हैं कि यह गाडण परिवार जैसलमेर से उदयपुर के नेगडिय़ा होते हुए आमेर आया था। कवि हिंगलाजदान ने उन दिनों के हरमाड़ा की विशेषता के बारे में लिखा कि बीथ्यां सहित बाजार,
पार शोभा कुण पावै
बागां अजब बहार ,
सरस सहकार अनार
हरमाड़ा के बारेठ परिवार में ब्याही गई कुचामन के पास जसराना की लडक़ी माहेश्वरी, ब्राह्मण आदि कई जातियों के परिवारों को अपने साथ लाई थी। सवाई जयसिंह ने देवीदान चारण की विद्वता से खुश हो रामपुरा, राजावास, बढ़ारणा, किशोरपुरा सहित सात गांव भेंट किए। देवीदान के पिता हरिदास की छतरी बनी हुई है। कल्याणदास ने काव्य ग्रंथ नाग दमन की रचना की। इस काव्य से सांप के काटे का झाड़ा लगता हैं।
भगवत सिंह गाडण के मुताबिक सवाई राम सिंह द्वितीय के शासन में रामदयाल गाडण ने पांच सौ पृष्ठ के रामनव कीर्ति प्रकाश ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में घोड़ों की पहचान, रोग व उपचार की जानकारी दी गई। इस ग्रंथ में गीतों की विशेषता भी लिखी गई। गाडण ने रामसिंह के समय का इतिहास लिखा, जिसमें राज दरबार के नियम कायदों का हाल लिखा। बद्रीदान ने करणी करुणा शतक, गीता को झूमको, आम्बै री डाळ आदि राजस्थानी गीतों की रचना की।
इतिहास के प्रो. राघवेन्द्र सिंह मनोहर ने लिखा है कि चारण विद्वानों ने कभी चाटुकारिता नहीं की बल्कि राजा को असलियत बताई। चारों तरफ पहाडिय़ों से घिरे हरमाड़ा में आजादी के पहले आमों के हजारों पेड़ों की सघन हरियाली रही। बारहठ जागीरदारों और माहेश्वरी महाजनों की कलात्मक हवेलियों की आज भी अलग ही शान हैं।
आजादी के पहले हरमाड़ा की आबादी केवल 1620 ही थी। रैगरों की बनाई जूतियां कभी हवामहल के सामने लगने वाले हटवाड़े में खूब बिकती थीं। महान योगी ब्रह्मलीन रविदास महाराज के नाथ बाबा आश्रम प्रसिद्ध हैं। सूरज सोनी के मुताबिक कभी चरण नदी, माचड़ा की नहर और आकेड़ा बांध की नहरों में हरमाड़ा के डूंगरों का पानी जाता था।
Published on:
24 Oct 2017 11:13 am
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