ठिकानों बीच विवाद ने लिया संघर्ष का रुप- दरअसल, अजादी से पहले सीकर ठिकाना जयपुर रियासत के अधीन था, और आज से लगभग 80 साल पहले सीकर शहर के चारों तरफ तोप तैनात कर दी गई। हर कोई भय के साए था। बावजूद इसके सभी लोग राव राजा कल्याण सिंह के साथ थे। साल 1938 में जयपुर के महाराज सवाई मानसिंह सीकर पर पूरी तरह कब्जा करने की कोशिश की थी। तो वहीं इस विवाद की शुरुआत सीकर के युवराज हरदयाल सिंह के इग्लैण्ड जाने की बात से हुआ था। और इसी एक बात को लेकर दोनों ठिकानों के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई कि विवाद ने संघर्ष का रुप ले लिया था।
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बता दें कि जयपुर के राजा सवाई मानसिंह सीकर के 16 वर्षीय राजकुमार हरदयाल सिंह को अपने साथ इंग्लैण्ड यात्रा पर ले जाना चाहते थे, लेकिन सीकर के नरेश जयपुर राज्य दरबार के इस फैसले को मानने के लिए राजी नहीं हुए। इसके बाद साल 1938 के अप्रैल से लेकर जुलाई तक दोनों ठिकानों के बीच लंबा संघर्ष चला। जिसमें लगभग 50 से अधिक लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। इतना ही नहीं सीकर नरेश राव राजा कल्याण सिंह को सीकर से निर्वासित भी कर दिया गया। तब नेताजी ने आगे बढ़कर साथ दिया- अपनी इन्हीं मांगों को लेकर राजस्थान एजीजी को सीकर के 40 हजार लोगों ने ज्ञापन भी सौंपे थे। हालांकि उस जमाने में कांग्रेस देशी रियासतों के मसले को लेकर कोई भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी। तभी इसी के बीच नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आगे बढ़कर सीकरवासियों के लिए अपने विशाल हृदय खोले और उनके लिए सहानुभूति दिखाई। जिसके बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक आयोजित की गई और जिसमें एक प्रस्ताव पारित हुआ।
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पद्मावत , कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी सरकार की: सुप्रीम कोर्ट ऐसे हुआ समझौता- फिर इसके बाद सेठ जमनाला बजाज ने दोनों ठिकानों के बीच 25 जुलाई 1938 को मध्यस्थता कराने में कामयाब रहे। इतना ही नहीं इसी के बाद सीकर की जनता ने बिना किसी शर्त के ठिकाने के सभी गेट खोल दिए। और अपनी तोपे हटा ली। इसी के साथ 5 जुलाई 1943 को राव राजा कल्याण सिंह को दुबारा उनका अधिकार दे दिया गया। जहां अपनी निर्वासन काल के दौरान वे दिल्ली में रहे। ये सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व का ही असर था कि सीकर को फिर से उसका अधिकार मिल गया। जिसके खुशी में लोगों ने गढ़ परिसर और चौराहे का नाम बदलकर सुभाष चंद्र बोस कर दिया। इनका कहना है- इतिहास के जानकार अरविन्द भास्कर की मानें तो हर युवा पीढ़ी को अपने इतिहास की जानकारी होनी जरुरी है। जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने संकट के दौर में सीकर की जनता के लिए आगे बढ़कर साथ दिया। तो वहीं सीकर के इतिहास और साहित्य को संग्रहित करने में जुटी सुमित्रा बुरानियां का कहना है कि सीकर जिले का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। जबकि इतिहासकारों का कहना है कि नेताजी को सीकर की जनता से गहरा लगाव था। और लोगों ने भी उनका सम्मान करते हुए ढ़ के सामने के क्षेत्र का नाम सुभाष चौक कर दिया था।