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सन् 56 की पैमाइश, नया सेटलमेंट हो तो सुलझे जमीन विवाद

बरसात का मौसम आते ही जिले में जमीन को लेकर लड़ाई शुरू हो जाती हैं। कहीं कोई किसी की बाड़ में घुस जाता है, तो कहीं जमीनी हकीकत मालूम नहीं होने से खूनी जंग शुरू हो जाती है।  जिले में पिछले 60 साल से जमीनी की पैमाइश नहीं होने के कारण नक्शों की लकीरें और जमीनी सरहदें अलग-अलग कहानियां बयां कर रही हैं।

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DeenDayal Sharma

Jul 06, 2015

बरसात का मौसम आते ही जिले में जमीन को लेकर लड़ाई शुरू हो जाती हैं। कहीं कोई किसी की बाड़ में घुस जाता है, तो कहीं जमीनी हकीकत मालूम नहीं होने से खूनी जंग शुरू हो जाती है। जिले में पिछले 60 साल से जमीनी की पैमाइश नहीं होने के कारण नक्शों की लकीरें और जमीनी सरहदें अलग-अलग कहानियां बयां कर रही हैं।
बंदोबस्त विभाग की ओर से पहले राजस्व भूमि की पैमाईश (सेटलमेंट) होती थी, जिसमें मौके पर जाकर 1-1 इंच जमीन का सही नापतौल कर खातेदारी इन्द्राज होती थी।
नक्शा व जमाबंदी रिकॉर्ड में स्थिति एक जैसी होती थी। सेटलमेंट के अभाव में वर्तमान में नक्शा एवं मौके की स्थिति अलग-अलग बनी हुई है।
डूंगरपुर जिले में आजादी के बाद सिर्फ एक ही बार 1956 में पैमाईश हुई व वर्तमान में उसी पैमाईश के नजरी नक्शे पर काम चल रहा है। 59 वर्ष पूर्व जिन मौतबीर लोगों की मौजूदगी में पैमाईश हुई, उसमें अधिकांश तो फौत हो चुके हैं, जबकि इतने वर्षो में गांवों की आबादी का भी काफी विस्तार हो गया।
आसपुर के एसडीओ संजय कुमार शर्मा का कहना है कि सेटलमेंट होने से काफी लाभ होगा। बन्दोबस्त विभाग द्वारा पैमाइश (सेटलमेंट ) कराने से कृषि प्रयोजन के सम्परिवर्तन, आपसी सहमति से बंटवारे आदि में काश्तकारों को दफ्तरों के चक्कर काटने से राहत के साथ खातेदारी हकएवं अन्य समस्याओं से निजात मिलेगी।