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यात्राओं के रथ से मिले ‘रामÓ, यों घूमा राजनीति का पहिया

आडवाणी की रथयात्रा ने राममंदिर निर्माण के लिए जबकि श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सत्याग्रह और जोशी की तिरंगा एकता यात्रा ने कश्मीर पुनर्गठन का मार्ग प्रशस्त किया

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अयोध्या में पांच अगस्त को उस समय एक नया अध्याय लिखा जाएगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुचर्चित राममंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे। ठीक एक साल पहले पांच अगस्त का दिन जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी करने और राज्य के पुनर्गठन के लिए भी तारीखों में हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है। चाहे वह मंदिर निर्माण हो या जम्मू-कश्मीर की स्थिति में बदलाव, वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की 1990 में की गई सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा मील का पत्थर है, जिसने भारत की राजनीतिक जमीन को आरएसएस-भाजपा की विचारधारा के लिए उपजाऊ बना दिया।
हालांकि, इसकी नींव तो उसी दिन रख दी गई थी जब पंडित श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने देश की पहली कैबिनेट से इस्तीफा देकर श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने का संकल्प लिया था। वहां पहुंचने से पहले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था, पर उनकी अधूरी इच्छा को पूरा किया भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की तिरंगा एकता यात्रा ने। जोशी की तिरंगा एकता यात्रा कन्याकुमारी से होते हुए 26 जनवरी, 1992 को श्रीनगर पहुंची। देश की राजनीति में इन तीन यात्राओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। जब प्रधानमंत्री मोदी जब अयोध्या में राममंदिर के लिए भूमिपूजन कर रहे होंगे, देश इन तीनों यात्राओं को जरूर याद करेगा। खासकर इसलिए भी कि आडवाणी की रथयात्रा और जोशी की एकता यात्रा दोनों के समन्वयक नरेंद्र मोदी ही थे।

गुजरात: सोमनाथ से रथयात्रा शुरू
भा जपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में 25 सितंबर, 1990 को सोमनाथ से रथयात्रा निकाली गई। नरेंद्र मोदी तब गुजरात भाजपा के पदाधिकारी थे। मोदी ने रथयात्रा रवानगी से पहले आयोजित सभा में आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक बाला साहब देवरस, कथावाचक मोरारी बापू एवं अमरदास खारावाला के संदेशों का वाचन किया था। आडवाणी के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह फिलहाल सोमनाथ ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं।
सवा मन दूध से अभिषेक
रथयात्रा की सफलता के लिए सोमनाथ महादेव का सवा मन दूध का अभिषेक किया था। आम के पत्तों के तोरण, नारियल, केले के पेड़ों से बनाए खंभों से सजावट कर सोमनाथ महादेव मंदिर तक के मार्गों को सजाया गया था। रथयात्रा के लिए 24 माइक लगाए गए थे। विभिन्न मार्गों पर पांच हजार पोस्टर चिपकाए गए थे। प्रभास पाटण के ब्राह्मण नानूभाई प्रच्छक बताते हैं कि रथयात्रा व राम मंदिर संकल्प की सफलता के लिए उन्होंने 11 ब्राह्मणों के साथ यज्ञ किया। यज्ञ में आडवाणी सपत्नीक बैठे थे। ग्वालियर की तत्कालीन सांसद विजयाराजे सिंधिया भी यज्ञ के दौरान मौजूद थीं।
बिहार: समस्तीपुर में रुका था रथ
23 अक्टूबर, 1990 को बिहार के समस्तीपुर में रोकी गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए थे। तब लालू जनता दल का हिस्सा थे जो केंद्र में वीपी सिंह के सरकार में शामिल थे। आडवाणी को अघोषित स्थल पर एक सप्ताह के लिए रखा गया। इस घटना के बाद भाजपा ने केन्द्र से समर्थन वापस लिया। देश के कई शहरों में दंगे भी हुए थे। इस तरह आडवाणी की इस रथयात्रा ने भारतीय राजनीति की तस्वीर पूरी तरह से बदल दी।
जब अमानुल्ला ने आडवाणी को गिरफ्तार करने से मना किया
लालू प्रसाद ने धनबाद के तत्कालीन उपायुक्त अफजल अमानुल्लाह को निर्देश दिया कि वो आडवाणी को गिरफ्तार करेंं। रासुका में वारंट भी दे दिया, लेकिन अमानुल्लाह ने इनकार कर दिया। अमानुल्लाह बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक सैयद शहाबुद्दीन के दामाद थे। उन्हें लगा कि उनके इस कदम से गलत संदेश जा सकता है और तनाव बढ़ेगा। 23 अक्टूबर, 1990 को आडवाणी ने पटना में रैली की।