
जयपुर। नाहरगढ़ जैविक उद्यान में इस समय बाघ और लेपर्ड शावकों की चहल-पहल देखने को मिल रही है। इन शावकों ने न केवल मौत के मुंह से निकलकर जीवन की जंग लड़ी है, बल्कि उन्हें मां का दुलार भी नसीब नहीं हुआ। जैविक उद्यान के वन्यजीव चिकित्सक और स्टाफ के अथक प्रयासों ने इन शावकों को जीवनदान दिया है। वरिष्ठ वन्यजीव चिकित्सक डॉ. अरविंद माथुर का कहना है कि इन शावकों की सुरक्षा और देखभाल करना एक बड़ी उपलब्धि है।
बाघिन रानी ने पांच माह पूर्व चार शावकों को जन्म दिया था, जिनमें से एक मृत पैदा हुआ और दूसरे की अगले दिन मौत हो गई। शेष दो शावकों की जान पर खतरा था, इसलिए उन्हें मां से अलग कर रेस्क्यू सेंटर में रखा गया। यहां उन्हें डमी के जरिए मां का एहसास करवाया गया। अब ये शावक डिस्प्ले एरिया के पास बड़े कराल में शिफ्ट हो चुके हैं। इन शावकों में एक सफेद बाघ शावक है, जिसे मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने भीम नाम दिया है, जबकि मादा शावक का नाम स्कंदी रखा गया है।
डेढ़ वर्षीय मादा लेपर्ड शावक राधा को करौली जिले के बिसोरी गांव के जंगल से लाया गया था। उस समय उसकी उम्र महज 10 से 15 दिन थी और उसका वजन केवल 1200 ग्राम था। मां से बिछड़ने के कारण वह भूखी, प्यासी और कमजोर थी। उसकी खास देखभाल के लिए अमरीका से विशेष दूध पाउडर मंगवाया गया। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ और हष्ट-पुष्ट है, और रेस्क्यू सेंटर में खेलती-कूदती नजर आती है।
बाघ शावक रणवीर को करीब 15 माह पूर्व रणथम्भौर के जंगल से लाया गया था। उस समय यह बहुत कमजोर और बीमार था। रेस्क्यू सेंटर में चिकित्सकीय निगरानी के बाद धीरे-धीरे यह रिकवर हुआ और अब यह पूरी तरह से खूंखार बन गया है। रणवीर अब खुद ही शिकार करने लगा है, जो उसके स्वास्थ्य में सुधार का संकेत है।
Updated on:
14 Oct 2024 10:19 am
Published on:
14 Oct 2024 10:16 am
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