
सजावटी पौधे हुए आउटडेटेड, अब कल्पवृक्ष पौधे रोपने लगे लोग, भारत में इसका वानस्पतिक नाम है बंबोकेसी
जयपुर। पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों में जागरुकता का दायरा फैल रहा है। इसी के तहत अब स्थानीय स्तर पर लोग सजावटी की बजाय घने वृक्ष के लिए पौधे रोपने के लिए आगे आ रहे हैं। चारदीवारी के किशनपोल बाजार स्थित बोर्डी का रस्ता में कल्पवृक्ष का पौधा लगाया गया। अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के अंतरराष्ट्रीय फोरम के संयोजक तथा मारवाड़ी युवा मंच जयपुर कैपिटल शाखा के सदस्य अभिषेक मेठी ने बताया कि मौजूदा हालात फलदार और घने वृक्ष वाले पौधे लगाने की जरूरत है। इसके लिए बच्चों को भी जागरुक किया जा रहा है, जिससे वे इसकी महत्ता समझ सकें।
यह है कल्पवृक्ष
ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। यह यूरोप के फ्रांस व इटली में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। इसको फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था, इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया। इसे बाओबाब भी कहते हैं।
वेद पुराणों में उल्लेख
हमारे वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है।पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पवृक्ष की भी उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना 'सुरकानन वन' (हिमालय के उत्तर में) में कर दी थी। पद्मपुराण के अनुसार पारिजात ही कल्पतरु है।
Published on:
17 Aug 2021 11:22 pm
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