
पार्टी में भी बात यूनिटी की ही तो है...
- पंकज श्रीवास्तव
राजस्थान में कांग्रेस सरकार होने से उम्मीद की जा रही थी कि यहां राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कीर्तिमान रचेगी। कुछ-कुछ ऐसा हुआ भी। भीड़ के नए रेकॉर्ड बने तो राजस्थानी रंग में रंगी यात्रा में लोगों को रोमांचक अनुभव हुए। भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले हाड़ौती में कांग्रेस कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती थी। पर हाड़ौती में ही कुछ बेहद कड़वे अनुभव समेटकर यात्रा आगे बढ़ रही है, जिसके दूरगामी परिणाम नजर आएंगे। सितंबर माह में जो भी राजनीतिक घटनाक्रम राजस्थान में हुए उनसे कांग्रेस की कलह खुलकर सामने आ गई थी। इस कलह का असर यात्रा में भी स्पष्ट देखने को मिला। साथ चलकर भी नेताओं में दूरियां स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। बार-बार राहुल गांधी ने वरिष्ठतम नेताओं को साथ बिठाया। कभी मंच पर कभी चाय पर तो कभी सड़क पर साथ लेकर चले। उन्होंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की कि एकजुटता का संदेश जनता में जाए। लेकिन कोटा में हुआ घटनाक्रम एक बार फिर वर्चस्व की जंग का इशारा कर गई। कोटा में यात्रा को लेकर जो भी बदलाव हुए उन्हें इसी जंग से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि कांग्रेस के सूत्र यात्रा में हुए बदलाव के लिए अलग-अलग कारण गिनवाकर बचते दिखे पर सच यही है कि दो दिग्गज नेताओं के बीच की कड़वाहट ने यात्रा पथ में कांटों का काम कर दिया।
चर्चा यह भी रही कि कुछ विधायक और नेता यात्रा में सिर्फ अपने क्षेत्र तक ही सीमित रहे। अपने क्षेत्र की सरहद पर इन्होंने यात्रा को अलविदा कह दिया। इसे भी आपसी मनमुटाव का नतीजा बताया जा रहा है। भारत जोड़ो में कांग्रेस को जोडऩे के जो प्रयास राहुल की ओर से हुए वो स्पष्ट तौर पर अधूरे ही रहे। कोटा में भारत जोड़ो सेतू पर बनी यूनिटी की पेंटिंग पर हाथ का छापा लगाते समय राहुल ने इसे एक महत्वपूर्ण पड़ाव बताया। लेकिन कुछ नेताओं को यूनिटी का पाठ पढ़ाने और प्रदेश कांग्रेस को पटरी पर लाने के लिए अभी उन्हें और संघर्ष से गुजरना पड़ेगा।
Published on:
16 Dec 2022 05:43 pm
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