
पॉलिटिकल डायरी: मेवाड़ और वागड़ में चेहरे-मोहरों की लड़ाई
अभिषेक श्रीवास्तव
उदयपुर संभाग: राजनीति की उर्वरा से भरपूर मेवाड़ और वागड़ भाजपा व कांग्रेस पर बराबर मेहरबान रहा है। उदयपुर को छोड़ दें तो राजसमंद, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और चित्तौडगढ़़ में दोनों पार्टियों में लड़ाई बराबर की दिखती है और जीत-हार का अंतर प्रत्याशियों के व्यक्तित्व और संगठन की सक्रियता पर निर्भर करता है। हालांकि वागड़ में बीटीपी का बढ़ता दायरा जरूर दोनों दलों के लिए चिंता का सबब बन चुका है। डूंगरपुर के ग्रामीण इलाकों में छात्रसंघ चुनावों में भील विद्यार्थी मोर्चे की जीत ने इनके नेताओं का तनाव बढ़ाने का काम किया है।
उदयपुर संभाग में बीजेपी संगठन ने होमवर्क शुरू कर दिया है। आपको किसी न किसी चौराहे पर कुछ कुर्सियां और बीजेपी का झंडा दिख जाएगा। यहां बैठे भाजपा कार्यकर्ता सरकार की कमियां गिनाते और राह चलते लोगों का ध्यान आकृष्ट करते मिल जाएंगे। जनाक्रोश यात्रा के बहाने संभाग की 28 सीटों पर ये जमीनी स्तर पर कार्य में जुट चुके हैं। यहां सबकुछ चेहरों से ज्यादा संगठन तय कर रहा है।
इधर, चेहरे और मोहरों की लड़ाई में कांग्रेस का संगठन पीछे छूट रहा है। संगठनों पर चेहरों के हिसाब से मोहरे बैठाए गए हैं। पार्टी में राज्य स्तर पर चल रही खींचतान का असर भी यहां दिख रहा है। प्रदेश में कांग्रेस की हुकूमत है, राहुल गांधी की यात्रा चल रही है, लोग संवाद भी कर रहे हैं, लेकिन संगठनात्मक स्तर पर कोई बड़ी पहल नजर नहीं आती है, जबकि राहुल गांधी का मंतव्य या भूमिका लोगों को जोडऩे और जुडऩे की है। कांग्रेस को सत्ता परिवर्तन या चेहरा बदलने का भी इंतजार है, ताकि काम करने की रणनीति को अमलीजामा पहनाया जा सके। संगठनात्मक मजबूती को लेकर भी संवाद जारी है, लेकिन गुटों में बंटे होने के कारण मूर्त रूप कब व कैसे दिया जाए यह तय नहीं है। उदयपुर संभाग में 28 विधानसभा सीटें हैं, जहां कांग्रेस व भाजपा बराबर काबिज है। दो सीट बीटीपी के खाते में हैं।
Published on:
15 Dec 2022 05:50 pm
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