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power crisis: राजस्थान में जरुरी है कोयला आधारीत इकाइयों का संवर्धन

राजस्थान ने जब नवीनतम ऊर्जा क्षेत्र ( energy sector ) में गुजरात और तमिलनाडु के बाद सबसे बड़ी क्षमता स्थापित करके अपनी खास पहचान बनाई है तब यह जरुरी है की सरकार कोयला आधारित इकाइयों ( coal based power plants ) को भी चलाये रखे। नवीनतम ऊर्जा समय की मांग है पर पारंपरिक ऊर्जा का वह विकल्प नहीं बन सकती। पिछले कुछ दिनों से राजस्थान और अन्य कई राज्यों ने कोयले की किल्लत के चलते बिजली मांग पूरी करने में अपनी असहायता जाहिर कर बिजली कटौती ( power crisis ) की घोषणा की है।

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power crisis: राजस्थान में जरुरी है कोयला आधारीत इकाइयों का संवर्धन

power crisis: राजस्थान में जरुरी है कोयला आधारीत इकाइयों का संवर्धन

जयपुर। राजस्थान ने जब नवीनतम ऊर्जा क्षेत्र में गुजरात और तमिलनाडु के बाद सबसे बड़ी क्षमता स्थापित करके अपनी खास पहचान बनाई है तब यह जरुरी है की सरकार कोयला आधारित इकाइयों को भी चलाये रखे। नवीनतम ऊर्जा समय की मांग है पर पारंपरिक ऊर्जा का वह विकल्प नहीं बन सकती। पिछले कुछ दिनों से राजस्थान और अन्य कई राज्यों ने कोयले की किल्लत के चलते बिजली मांग पूरी करने में अपनी असहायता जाहिर कर बिजली कटौती की घोषणा की है।
जब राजस्थान का पर्यटन उद्योग पर निर्भर अर्थतंत्र कोविड के उप्तात के बाद त्योहारों के मौसम में फिर खड़ा होने की कगार पर है, तब यह घंटो तक की बिजली कटौती राज्य के आम आदमी के हित में नहीं है। राजस्थान में प्रतिदिन बिजली की औसत मांग 12,500 मेगावाट है, पर बिजली की उपलब्धतता सिर्फ 8500 मेगावाट ही है। इसके चलते राजस्थान एनर्जी एक्सचेंज को 10 रुपए प्रति यूनिट से 15 रुपए प्रति यूनिट तक चूका कर बिजली खरीद रहा है और उसका सीधा बोज ग्राहकों पर पड़ेगा।
एक तरफ राजस्थान को इतनी महगी बिजली खरीदनी पड़ रही है तब राज्य के कुछ कोयला आधारित संयंत्र कोयले की कीमत का कुछ समय से भुगतान ना होने पर बंध पड़े है और नवीनतम ऊर्जा निरंतर उत्पन्न हो नहीं सकती। यह परियोजनाएं चार रुपए प्रति यूनिट या उससे भी कम दर में बिजली पैदा कर सकते है। राज्य सरकार को जल्द से जल्द लम्बे समय से चल रहे कोयले के भुगतान के मुद्दे सुलझा देने चाहिए, ताकि राज्य के उद्योग, व्यापार और स्वास्थ्य सेवाएं सामान्य रूप से चल सके। चाहे गांव हो या शहर, बिजली की कटौती सामान्य जनजीवन को भी अस्तव्यस्त कर देती है।
विशेषज्ञों का मानना है राजस्थान और भारत को नवीनतम और पारंपरिक ऊर्जा के बिच संतुलन बनाकर भविष्य की रणनीति बनानी पड़ेगी। आज राजस्थान में करीब 11,000 मेगावॉट की विज उत्पादन क्षमता कोयले से चलती है, जो की राज्य की ऊर्जा शक्ति के लिए रीड की हड्डी के बराबर है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार राज्य में प्रतिदिन कोयले की सिर्फ आठ रैक आ रही है, जबकि इंधन की मांग उससे कई ज्यादा है। राज्य की साड़ी क्षमता को पूरी तरह इस्तेमाल करने के लिए जरुरी कोयला पुराने बकाये की राशि को चुकाकर खरीदा जा सकता है। इससे उपभोक्ताओं को एनर्जी एक्सचेंज से खरीदनी पड़ रही, महगी बिजली से राहत मिल सकती है। सूत्रों के अनुसार, आज राज्य में बिजली की मांग को पूरी करने के लिए करीब 4000 मेगावॉट की कमी है, जिसके लिए उससे कई गुना ज्यादा नवीनतम ऊर्जा के संयंत्र लगाने पड़ेंगे, जबकि उपलब्ध कोयला आधारित इकाइयों को चलाकर भी यह कमी को पूरा किया जा सकता है।