
फोटो- एआई जेनरेटेड
जयपुर। राजस्थान में शहरी निकाय चुनाव से पहले नियमों में बड़े बदलाव की तैयारी है। राज्य सरकार पार्षद पद के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता दसवीं या बारहवीं तय कर सकती है। स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने मुख्यमंत्री को इस संबंध में औपचारिक प्रस्ताव भेज दिया है। बताया जा रहा है कि मंत्री और सीएम के बीच इस पर चर्चा भी हो चुकी है और अब सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। अभी तक शहरी निकाय चुनावों में किसी भी तरह की शैक्षणिक योग्यता की शर्त नहीं है।
सरकार का मानना है कि शहरी सरकारों का संचालन अधिक जिम्मेदारी और समझदारी से हो, साथ ही केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं जमीनी स्तर पर बेहतर तरीके से लागू हो सकें, इसके लिए यह कदम जरूरी है। हालांकि, भाजपा के एक शीर्ष नेता ने सरकार को स्नातक की योग्यता रखने का भी सुझाव दिया है। राज्य सरकार ‘एक राज्य, एक चुनाव’ के तहत सभी निकायों में एक साथ चुनाव कराना चाह रही है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि प्रदेश में शहरी निकाय चुनाव 15 अप्रैल तक कराए जाएं।
इस बार शहरी निकाय चुनाव बदले हुए ढांचे में होंगे। परिसीमन और पुनर्गठन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, जिसके तहत प्रदेश में करीब 2700 नए वार्ड बनाए गए हैं। इसके बाद राज्य में वार्डों की कुल संख्या बढ़कर 10,175 हो गई है, जबकि पहले यह संख्या 7475 थी। वर्ष 2019 में प्रदेश में 196 नगरीय निकाय थे, जो अब बढ़कर 309 हो गए हैं।
चुनाव लड़ने वालों के लिए लागू अधिकतम दो बच्चों की बाध्यता हटाने का भी प्रस्ताव है। विभिन्न जनप्रतिनिधियों और नेताओं की मांग पर सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है। स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा पहले भी इसके संकेत दे चुके हैं। अभी नियम यह है कि जिनके दो से ज्यादा बच्चे हैं, वे पंचायत या निकाय चुनाव नहीं लड़ सकते। अब इसे बढ़ाकर तीन बच्चों तक किया जा सकता है।
'शहरी निकायों का संचालन अधिक सक्षम और जिम्मेदार बनाने के लिए पार्षद पद की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय करने का प्रस्ताव भेजा गया है। उद्देश्य योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना है। सभी पहलुओं और विधिक राय के आधार पर उच्च स्तर पर जल्द निर्णय हो जाएगा।' -झाबर सिंह खर्रा, स्वायत्त शासन मंत्री
'अभी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का कोई प्रावधान नहीं है। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के पास सरकारी योजनाओं के संचालन और उनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी रहती है। ऐसी स्थिति में न्यूनतम शिक्षित होने का प्रावधान किया जाना जनहित में होगा।' -अशोक सिंह, विशेषज्ञ
Published on:
25 Dec 2025 06:00 am
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