
Rajasthan News : राजस्थान विधानसभा में विधायकों के नारे और बहस गूंजती हैं, लेकिन जनहित के कानून बनाने की निजी पहल नदारद है। विधानसभा के शुरुआती 56 वर्षों में गैर सरकारी विधेयकों के 105 प्रस्ताव विधानसभा पहुंचे, उनमें से 57 विधेयक पेश हुए। इनमें से 4 विधेयकों ने कानून का रूप भी लिया, लेकिन करीब पचास साल से कोई गैर सरकारी विधेयक कानून बना और बीते 17 वर्षों में तो किसी विधायक ने व्यक्तिगत स्तर पर कोई विधेयक पेश ही नहीं किया।
विधायक बहस और नारेबाजी में तो बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन जनहित में कानून बनवाने की निजी पहल में कमजोर हैं। 1952 से 2008 के बीच 57 गैर सरकारी विधेयक सदन में आए। आखिरी निजी विधेयक वर्ष 2007 में रामनारायण मीणा ने पेश किया, जो राजस्थान साहूकारी (ब्याज की अधिकतम सीमा) विधेयक नाम से सदन में आया।
इस बीच शुरुआती 23 वर्षों में चार गैर सरकारी विधेयक कानून बने और कुछ निजी विधेयकों से प्रेरित होकर सरकार ने कानून बनाने की पहल की। पिछले 50 वर्ष में कोई गैर सरकारी विधेयक विधानसभा से पारित ही नहीं हो पाया।
आज विधायक सोशल मीडिया पर आने का प्रयास ज्यादा करते हैं। गरीब बच्चों को अच्छी पढ़ाई, एमएसपी पर उपज खरीद की गारंटी, खेतों को बर्बाद करने वाले जंगली पशु संरक्षित सूची से बाहर हों। जनहित के ये ऐसे विषय हैं, जिन पर कानून बनना चाहिए पर किसी का ध्यान ही नहीं है।
रामनारायण मीणा, पूर्व उपाध्यक्ष, राजस्थान विधानसभा
1- राजस्थान विधि व्यवसायी (संशोधन) विधेयक-1952 : नीमकाथाना से तत्कालीन विधायक कपिलदेव अग्रवालका यह विधेयक 1953 मेंकानून बना।
2- राजस्थान प्रिजर्वेशन ऑफ सर्टेन एनीमल्स, (संशोधन) विधेयक-1954 : टोंक से तत्कालीन विधायक रामरतन टिक्कीवाल का विधेयक 1956 में कानून बना।
3- राजस्थान समाज शिक्षण बोर्ड विधेयक-1958 : मावली से तत्कालीन विधायक जनार्दनराय नागर का यह विधेयक 1961 में कानून बना।
4- राजस्थान पशु-पक्षी बलि (निषेध) विधेयक-1973 : लूणकरणसर से तत्कालीन विधायक भीमसेन का यह विधेयक 1975 में कानून बना।
Updated on:
13 Apr 2025 08:14 am
Published on:
13 Apr 2025 08:13 am
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