प्रदेशाध्यक्ष को लेकर पार्टी लंबे समय से मंथन में जुटी थी। जातिगत समीकरणों की वजह से प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा नहीं की गई थी। केंद्र में गजेंद्र सिंह शेखावत को मंत्री बनाया गया था। इसी तरह जाट समुदाय के कैलाश चौधरी और दलित समुदाय से अर्जुन मेघवाल को केंद्र में मंत्री बनाया गया। विधानसभा में गुलाबचंद कटारिया को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी दी गई, जो वैश्य समाज से आते हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि पार्टी किसी ब्राह्मण को इस सीट पर बैठा सकती है, लेकिन पंचायत और निकाय चुनावों के मद्देनजर पार्टी ने जाट पर दांव खेला है। वैसे पहली बार प्रदेशाध्यक्ष बनाने में पार्टी को 82 दिन का समय लगा हैं। इससे पहले अशोक परनामी के इस्तीफे के 72 दिन बाद मदन लाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था।
पूनिया का राजनीतिक अनुभव ( Satish Poonia Political Career )
– 20 जून, 1964 को चूरू के एक छोटे से गांव में हुआ था पूनिया का जन्म
– विज्ञान में स्नातक, एलएलबी और भूगोल से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई
– एबीवीपी से लंबे समय तक जुड़े रहे सतीश पूनिया
– छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा मगर हार मिली
– चार बार भाजपा के प्रदेश महामंत्री रहे
– लगातार 14 साल तक प्रदेश महामंत्री पद पर काम किया
– संघ पृष्ठभूमि से आते हैं सतीश पूनिया
पूनिया को भाजपा के सदस्यता अभियान का प्रदेश संयोजक बनाया गया था। उन्होंने प्रदेश में 57 लाख नए सदस्य बनाए है। ऐसे में पार्टी के प्रदेश में कुल सदस्यों की संख्या 1 करोड़ 9 लाख के पार पहुंच गया है। ऐसे में पार्टी ने उनकी इस मेहनत का तोहफा देते हुए उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया है। पूनिया पूर्व में लंबे समय तक महामंत्री और वर्तमान में प्रदेश प्रवक्ता के पद पर कार्य कर रहे थे। ऐसे में उनके पास संगठन में काम करने का लंबा अनुभव भी है। हालांकि पूनिया दो बार एमएलए का चुनाव हार चुके हैं। एक बार उप चुनावों में सार्दुलपुर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद आमेर से 2014 के चुनावों में उन्हें महज 329 वोटों से हार मिली थी। पूनिया ने कहा कि एक छोटे से कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था और कभी नहीं सोचा था कि इस पद तक पहुंचे सकूंगा। उन्होंने कहा कि 2014 में हार के बाद ठान लिया था कि चुनाव जीतकर रहूंगा।
निकाय और पंचायत चुनावों को देखते हुए पार्टी ने पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। लोकसभा चुनावों में पार्टी सभी 25 सीटों पर जीतकर उत्साह से लबरेज है, मगर आने वाले चुनावों के मुद्दे और समीकरण अलग हैं। ऐसे में पूनिया के लिए चुनावों की राह आसान नहीं कही जा सकती है।