
Rajasthan Bypoll 2024: राजस्थान में उपचुनावों की तारीख का एलान होते ही राजनीतिक दलों में गहमागहमी बढ़ गई है। क्योंकि नामांकन की आखिरी तारीख में केवल 10 दिन बाकी हैं। बता दें 25 अक्टूबर को नामांकन की आखिरी दिन है। इससे पहले सभी पार्टियों को उम्मीदवारों के नाम घोषित करने हैं, वहीं प्रचार के लिए भी रणनीति बनानी है।
दरअसल, इन चुनावों में कांग्रेस को अपनी साख बचाने की चुनौती रहेगी। क्योंकि उसे चार सीटों को बचाने के साथ-साथ तीन और सीटों पर जीत दर्ज करनी है। कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। वहीं, मौजूदा भाजपा सरकार अपने 10 महीने के कार्यकाल को लेकर चुनाव में उतरेगी। इससे सीधे तौर पर सीएम भजनलाल शर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। एक तरीके से बीजेपी सरकार के लिए यह लिटमस टेस्ट जैसा ही होगा।
बता दें, रामगढ़ (अलवर), दौसा, झुंझुनूं और देवली-उनियारा सीटें कांग्रेस के पास हैं, जिन्हें बनाए रखना उनके लिए जरूरी है। इसके अलावा, खींवसर, चौरासी और सलूंबर सीटों पर जीत हासिल करना भी उनकी प्राथमिकता है। वहीं, भाजपा के पास 7 में से केवल 1 सीट है, बाकि 6 पर जीत करना उसकी प्राथमिकता में रहेगी। आइए जानते हैं क्या कहते हैं 7 सीटों के सीयासी समीकरण?
गुर्जर-मीणा बाहुल्य इस सीट पर किरोड़ी लाल मीणा और सचिन पायलट का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। यहां किरोड़ी लाल मीणा के छोटे भाई जग मोहन मीणा बीजेपी से मजबूत दावेदारी कर रहे हैं, वहीं पूर्व विधायक शंकरलाल शर्मा भी ब्राह्मण वोटों के भरोसे मजबूती से ताल ठोके हुए हैं। इधर, 2013 के बाद से ये सीट मुरारी लाल मीणा का गढ़ बन गई है। अगर उनकी पत्नी को यहां से टिकट मिलती है तो बीजेपी के लिए यहां भारी चुनौती रहेगी। इसके अलावा छात्र राजनीति में कई सालों से सक्रिय रहे नरेश मीणा अगर चुनाव लड़ते हैं तो दोनों दलों का खेल बिगाड़ सकते हैं। क्योंकि नरेश मीणा का युवाओं में खासा क्रेज है।
देवली-उनियारा सीट भी गुर्जर-मीणा बाहुल्य मानी जाती है। यह सीट भी सचिन पायलट के प्रभाव वाली मानी जाती है, क्योंकि पायलट टोंक से ही विधायक हैं और यहां से विधायक रहे हरीश मीणा पायलट के काफी करीबी माने जाते हैं। इस सीट पर कांग्रेस के नेता हरीश मीणा और उनके परिवार का काफी असर माना जाता है। यहां से सांसद हरिश मीणा के भाई पूर्व केन्द्रीय मंत्री रहे नमोनारायण मीणा दावेदारी जता रहे हैं। अगर उनको टिकट मिलती है तो बीजेपी को यहां पर भारी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। उधर, गुर्जर आरक्षण आंदोलन के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला को फिर से टिकट मिलती है तो मुकाबला कांटे का हो सकता है। वहीं, लंबे समय तक कांग्रेसी रहे विक्रम गुर्जर भी मजबूत दावेदार हैं। इस सीट की रोचक बात ये है कि यहां गुर्जर-मीणा एकजुट होकर वोट करते हैं।
अगर उपचुनावों में ध्रुवीकरण की सबसे बड़ी हॉट सीट रामगढ़ को कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि यहां हिंदू और मुस्लिम वोटर लगभग बराबर हैं। यह सीट हिंदू और मुस्लिम प्रत्याशियों के टकराव में हमेशा से फंसी रही है। जुबेर ख़ान की मृत्यु से खाली हुई इस सीट पर अगर उनकी पत्नी या बेटे में से किसी को टिकट मिलती है तो कांग्रेस को सहानुभूति का फायदा मिल सकता है। वहीं भाजपा में हिन्दूत्व का फायर ब्रांड चेहरा रहे ज्ञानदेव आहुजा के लिए भी यहां की राजनीति मुफीद रहती है। अगर उनके भतीजे को टिकट मिलती है तो यहां से समीकरण बदल सकते हैं। बता दें यहां से 3 बार ज्ञान देव आहूजा और 4 बार जुबैर खान विधायक रहे हैं। अब बीजेपी सरकार में कांग्रेस के लिए यह सीट बचाना चुनौती रहेगा। इसके अलावा पिछली बार भाजपा के बागी सुखवंत सिंह भी मजबूत दावेदार है। पिछले चुनावों में निर्दलीय चुनाव लड़कर दूसरे नंबर पर रहे थे।
जाट बाहुल्य यह सीट वर्षों से कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है और पूर्व केंद्रीय मंत्री शीश राम ओला के परिवार का गढ़ मानी जाती है। इस बार कांग्रेस के सामने सीट को बरकरार रखना और बीजेपी के सामने कांग्रेस का गढ़ ढहाना चुनौती है। यहां से ओला परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट दिया तो भाजपा के लिए फिर से मुश्किल खड़ी हो सकती है। वहीं माली मतदाताओं की बड़ी संख्या को देखते हुए बीजेपी यहां से माली प्रत्याशी पर दांव खेलती है तो समीकरण बदल सकते हैं। इधर, लाल डायरी से चर्चा में आए पूर्व मंत्री राजेन्द्र गुढ़ा भी दावेदारी जता रहे हैं। अगर वह चुनाव लड़ते हैं तो मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।
यह सीट जाट बाहुल्य और हनुमान बेनीवाल का गढ़ मानी जाती है। इस सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होगा या आमने-सामने का होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस और RLP में गठबंधन होता है या नहीं। क्योंकि लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ था। अगर गठबंधन नहीं हुआ तो बेनीवाल अपनी पार्टी से छोटे भाई और पूर्व विधायक नारायण बेनीवाल या पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनवा लड़वा सकते हैं। ऐसी स्थिति में यहां मुकाबला त्रिकोणीय होगा। कांग्रेस से यहां राघवेन्द्र मिर्धा भी मजबूत दावेदारी जता रहे हैं। बीजेपी यहां से सहानुभूति कार्ड चलने के लिए ज्योति मिर्धा को भी टिकट दे सकती है, लेकिन उनके पिछले ट्रेक रिकॉर्ड को देखते हुए मुश्किल लग रहा है। बीजेपी में यहां सबसे प्रबल दावेदार रेवतराम डांगा है, जिनका हाल ही में एक कार्यक्रम में हनुमान बेनीवाल से विवाद भी हुआ था।
यह सीट आदिवासी बाहुल्य मानी जाती है। इन 7 सीटों में से बीजेपी के पास केवल यही सीट थी। भाजपा के लिए इस जीत को बरकार रखने की भी चुनौती रहेगी। बीजेपी यहां से सहानुभूति लेने के लिए विधायक रहे अमृत लाल मीणा के बेटे अविनाश मीणा को टिकट दे सकती है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए यहां मुश्किल होने वाली है। इसके अलावा कांग्रेस के पास इस सीट पर कोई प्रमुख आदिवासी चेहरा भी नहीं है। इसके अलावा भारत आदिवासी पार्टी अगर चुनाव लड़ती है तो दोनों दलों का समीकरण बिगाड़ सकती है।
आदिवासी बाहुल्य इस सीट पर बाप पार्टी पूरी तरह से हावी है। यह सांसद राजकुमार रोत का गढ़ मानी जाती है। गुजरात से सटे इस विधानसभा क्षेत्र में 90 फीसदी जनजाति के लोग निवास करते हैं। भारत आदिवासी पार्टी पहले ही यहां से किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करने का एलान कर चुकी है। चर्चा है कि बाप यहां से प्रमुख आदिवासी नेता पोपट लाल खोखरिया को टिकट दे सकती है। ऐसे में यहां त्रिकोणीय मुकाबला होना तय है। दूसरी ओर बीजेपी यहां से किसी समय कांग्रेसी रहे महेंद्र जीत सिंह मालवीय को प्रत्याशी बना सकती है। वहीं कांग्रेस से पूर्व सांसद तारा चंद भगोरा को टिकट दे सकती है।
Updated on:
15 Oct 2024 10:07 pm
Published on:
15 Oct 2024 08:50 pm
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
