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खूनी सडक़ हादसों में राजस्थान का देश में पांचवा स्थान, हर दिन 28 की जान ले रहीं प्रदेश की सडक़ें

सात जिलों में करीब तीन हजार से भी ज्यादा हादसे दस महीनों में दर्ज किए गए हैं। इनमें सबसे ऊपर जयपुर जिला है...

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जयपुर

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Dinesh Saini

Dec 30, 2017

road accident

जयपुर। खराब सडक़ों और ओवरस्पीड के चलते राजस्थान की सडक़ें हर दिन खून से लाल हो रही हैं। प्रदेश की सडकों पर हादसों के चलते हर दिन मौतों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। हालात ये है कि अब राजस्थान सडक़ हादसों के मामलों में तो देश में सातवें नंबर पर है, लेकिन इन हादसों में मरने वाले लोगों की संख्या में प्रदेश का नंबर पांचवा हैं। घायलों की संख्या भी हर साल बढ़ रही है। प्रदेश में इस साल दस महीनों में सडक़ हादसों में मारे गए लोगों की संख्या आठ हजार से भी ज्यादा है। यह संख्या पिछले साल मारे गए लोगों की तुलना में कुछ ज्यादा है।प्रदेश में औसतन हर दिन 28 लोग अपने घरों से तो निकलते हैं लेकिन वे हादसों का शिकार हो जाने के कारण घर नहीं पहुंच पाते। प्रदेश में इस साल जनवरी से लेकर अक्टूबर के महीने तक 8636 लोगों की मौत हो चुकी है। ये मौतें 18400 से भी ज्यादा सडक़ हादसों में हुई हैं। इन हादसों में मौतों के अलावा 18415 घायल भी हुए। इनमें आधे लोग ऐसे हैं जो जीवन भर के लिए अपने अंग खो चुके हैं। इतनी मौतों के बाद भी राजस्थान सरकार हादसों को रोकने में नाकाम है।

ओवरस्पीड और खराब सडक़ें सबसे बड़ा कारण
प्रदेश में ओवरस्पीड के कारण सबसे ज्यादा हादसे होना सामने आया है। ओवरस्पीड के बाद प्रदेश की खराब सडक़ें हादसों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। पुलिस अफसरों की मानें तो करीब चालीस प्रतिशत हादसों के लिए ओवरस्पीड जिम्मेदार है। उसके बाद खराब सडक़ों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में खुद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि कई राज्यों में सडक़ें रोड कांगे्रस के नियमों के तहत नहीं बन रही हैं। न ही उनकी देखरेख हो रही है। गडकरी ने राजस्थान का नाम भी लिया था।

जयपुर में सबसे हादसे
सडक़ हादसों के नाम पर प्रदेश भर में सात जिले सबसे ज्यादा बदनाम है। कुछ हादसों के करीब पचास प्रतिशत हादसे इन जिलों में दर्ज हुए हैं। इनमें सबसे ऊपर जयपुर जिला है। उसके बाद अजमेर , उदयपुर , कोटा , दौसा, बाड़मेर और भरतपुर जिलों में हादसों की संख्या सबसे ज्यादा है। इन सात जिलों में करीब तीन हजार से भी ज्यादा हादसे दस महीनों में दर्ज किए गए हैं।