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VIDEO: आखिर रंग लाई पत्रिका की मुहिम- राजस्थान सरकार ने वापस लिया काला कानून

सीएम ने सदन में बोलते हुए कहा कि पहले तो यह राजस्थान दंड विधियां संशोधन विधेयक (काला कानून) बना ही नहीं था, लेकिन अगर बात वापस लेने...

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जयपुर

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Punit Kumar

Feb 19, 2018

black law in rajasthan

जयपुर। आखिरकार सरकार को लोकतंत्र के सामने झुकना पड़ा। सरकार ने मीडिया को फंसाने तथा भ्रष्टों को बचाने वाले बिल अर्थात काला कानून को वापस ले लिया। विधानसभा में शोरगुल व हंगामे के बीच सोमवार को बजट पर विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देते हुए सरकार ने राजस्थान दंड विधियां संशोधन विधयेक-2017 को प्रवर समिति से वापस लेने की घोषणा की। इसके साथ ही प्रदेश में काला कानून का वजूद खत्म हो गया। खास बात यह रही कि सरकार ने सदन में खुद इस बिल को काला कानून करार दिया और प्रवर समिति से वापस लेने की बात कही। इधर काला कानून के वापस लेने पर प्रदेशभर में नेताओं से लेकर आमजन ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया।


इससे पहले नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी को सदन में स्पष्टीकरण नहीं देने की बात पर कांग्रेस ने हंगामा और शोरगुल किया। इस हंगामे के दौरान विधानसभा अध्यक्ष ने जवाब पेश करने मुख्यमंत्री का नाम पुकार लिया। कांग्रेसी सदस्य वेल में जोर जोर से नारेबाजी करते रहे। जवाब के दौरान अचानक काले कानून को प्रवर समिति से वापस लेने की घोषणा की गई। कहा गया कि अब बात काले कानून की, इस काले कानून को प्रवर समिति से वापस लिया जाएगा। कहा कि जो बिल लागू ही नहीं हुआ उस पर कांग्रेस बात कर रही है। जिस ऑर्डिनेंस को हमने लेप्स होने दिया, उस पर बात करना बेमानी है। हालांकि यह विधेयक बना ही नहीं है, लेकिन अगर बात वापस लेने की है तो राज्य सरकार इस कानून को वापस लेती है।

.....यह था काला कानून .....

राजस्थान सरकार ने सीआरपीसी की धारा-190(1) और धारा- 156(3) और आईपीसी की धारा में संशोधन कर दिया था। संशोधन के अनुसार किसी भी लोकसेवक और मजिस्ट्रेट के खिलाफ सरकार की अभियोजन स्वीकृति के बिना सीआरपीसी की धारा-156(3) में मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश इस्तगासे पर कोर्ट एफआईआर दर्ज करने या स्वयं जांच करने के आदेश नहीं दे सकती थी। सरकार को अभियोजन स्वीकृति देने के लिए 180 दिन का समय दिया गया था। इसी प्रकार आईपीसी की धारा-228-ए में संशोधन करके धारा-228-बी जोड़कर मीडिया का गला घोंट दिया था। संशोधन के अनुसार मीडिया में भ्रष्टाचार या अन्य किसी भी मामले में अदालती आदेश होने तक किसी प्रकार की कोई खबर ना तो प्रकाशित हो सकती थी और ना ही प्रसारित हो सकती थी। सरकार ने विधानसभा में विधेयक पेश करने से पहले इसे सात सितंबर को अध्यादेश के जरिए लागू किया था। अध्यादेश की अवधि एक दिसंबर को समाप्त हो गई थी लेकिन,इससे पहले ही सरकार ने विधेयक पेश कर दिया था।

...इमरजेंसी के जरिए कांग्रेस पर उतारी खीज
सरकार ने काला कानून वापस लेने के साथ ही विधानसभा में 19 जुलाई 1997 को तत्कालीन राज्यपाल के अभिभाषण का उल्लेख करते हुए इमरजेंसी के जरिए कांग्रेस पर खीज उतारी। इमरजेंसी देश के इतिहास का काला अध्याय है, लेकिन कांग्रेस ने कभी इसके लिए माफी मांगी क्या। आपातकाल देश का काला पृष्ठ है, इसे देश नहीं भूलेगा। जो कानून बना ही नहीं कांग्रेस उस पर बात कर रही है।

पत्रिका ने झकझोरा था

राजस्थान पत्रिका पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी ने अग्रलेख के जरिए सरकार के इस प्रकार का कानून लाने की बात उठाई थी। इसके बाद काले कानून के खिलाफ सदन से लेकर सड़क तक आमजन और नेताओं ने मुहिम चलाई। जो लोग राजस्थान पत्रिका पढ़ते हैं, वे पिछले कई माह से देख रहे हैं कि पत्रिका में मुख्यमंत्री का नाम और फोटो प्रकाशित नहीं होता। पत्रिका के प्रथम पृष्ठ पर जब तक काला, तब तक ताला शीर्षक से एक वाक्य भी छापा जाता है। पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी ने बाकायदा एक अग्रलेख लिख कर घोषणा की थी कि जब तक सरकार काले कानून को वापस नहीं लेती, तब तक मुख्यमंत्री की खबरों का बहिष्कार रहेगा। इसका कारण ही रहा कि सरकार को प्रवर समिति से कानून वापस लेना पड़ा। इधर भाजपा को हाल ही के उपचुनाव में मिली करारी हार का एक कारण भी यह काला कानून माना गया।