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पिछले पांच साल में बढ़े 19 लाख छात्र, लेकिन पढ़ाने वाले ही नहीं

समायोजन के नाम पर बंद किए स्कूल, सटीक नहीं बैठा एक कक्षा एक शिक्षक का फॉर्मूला

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jaipur

पिछले पांच साल में बढ़े 19 लाख छात्र, लेकिन पढ़ाने वाले ही नहीं

जया गुप्ता/जयपुर. प्रदेश में शिक्षा का स्तर ऊंचा करने के सरकार के प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं। सरकार की मानें तो नवाचारों के नाम पर प्रदेश में बीते पांच साल में 25 हजार प्राइमरी स्कूलों को समायोजन के नाम पर बंद कर दिया गया। स्टाफिं ग पैटर्न में शिक्षकों के 50 हजार पद खत्म किए। लेकिन स्कूलों में शिक्षकों की कमी पूरी नहीं हो पाई है। एक कक्षा-एक शिक्षक का फ ॉर्मूला अब तक सटीक नहीं बैठा है। बीते पांच साल में माध्यमिक शिक्षा में बच्चों का नामांकन 19 लाख तक बढ़ा है। लेकिन, नए शिक्षक लगाना तो दूर विभाग अपने मौजूदा काडर को भी नहीं भर पाया। 2015 में स्टाफिं ग पैटर्न में 50 हजार शिक्षकों के पद समाप्त किए गए। तब भी माध्यमिक शिक्षा में 2.85 लाख शिक्षक, कर्मचारियों का काडर था आज भी वहीं है। इसमें से भी करीब 80 हजार पद अभी खाली ही चल रहे है। ऐसे ही प्रारंभिक शिक्षा में भी 1.76 लाख शिक्षकों में से तकरीबन 70 हजार पद रिक्त पड़े हैं।

नहीं खोला स्कूल
सरकार ने पिछले साढे चार वर्षों में एक भी नया स्कूल नहीं खोला। हां, 7200 स्कूलों को माध्यमिक व उच्च माध्यमिक स्तर में क्रमोन्नत जरूर किया गया। सरकारी दावा यह है कि अब हर पंचायत समिति स्तर पर उच्च माध्यमिक स्कूल मौजूद है। पर क्रमोन्नयन के बाद सरकार इन स्कूलों में विषय अध्यापक लगाना ही जैसे भूल गई। राजधानी तक के स्कूलों में फिजिक्स और अकाउंटेंसी के शिक्षकों को सामान्य गणित पढ़ानी पड़ रही है।

लम्बित हैं भर्तियां
प्रदेश में वर्ष 2015 व 2016 में व्याख्याता व द्वितीय श्रेणी शिक्षकों की भर्तियां तो निकाली गईं। मगर अभी तक नियुक्तियां नहीं मिल पाई हैं। सैकंड ग्रेड के 7225 पदों के लिए अभ्यर्थी नियुक्ति के लिए अब तक इंतजार ही कर रहे हैं। शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने इस बारे में कहा कि कांग्रेस के समय शिक्षकों के 52 फ ीसदी पद रिक्त थे। अब 22 फ ीसदी हैं। लंबित भर्तियां पूरी होते ही 8.9 फ ीसदी ही पद खाली रहेंगे। एक लाख का प्रमोशन भी किए हैं। वहीं शिक्षाविद् भंवर सेठ ने बताया कि स्कूल क्रमोन्नत किए पर विषयाध्यापक नहीं पहुंचे। बच्चे कोचिंग सेंटर्स में पढ़ रहे हैं। बच्चों की स्कूल छोडऩे की दर बढ़ी है। कई क्षेत्रों में 1 किमी में सरकारी स्कूल नहीं।