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राजस्थान में रावण दहन की अनोखी परपंराएं, कहीं पूजा होती, कहीं पैरों से रौंदते, कहीं गधे का मुखौटा लगाते

Unique Traditions Of Burning Ravana In Rajasthan: जोधपुर से लेकर कोटा और जयपुर तक विजयादशमी की रस्में अलग.अलग रूपों में देखने को मिलती हैं, जो इस पर्व को खास बना देती हैं। कहीं शोक मनाया जाता है, कहीं दशहरे से पहले ही रावण फूंक दिया जाता है तो कहीं रावण के दस चेहरों में से एक को गधे का बनाया जाता है। इसके पीछे अलग-अलग मान्यताएं हैं।

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जयपुर, जोधपुर, कोटा में है अनोखी परंपराएं, फोटो - पत्रिका

Dussehra Mela In Rajasthan: राजस्थान में दशहरा सिर्फ रावण दहन तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां कई अनोखी परंपराएं आज भी निभाई जाती हैं। जोधपुर से लेकर कोटा और जयपुर तक विजयादशमी की रस्में अलग.अलग रूपों में देखने को मिलती हैं, जो इस पर्व को खास बना देती हैं। कहीं शोक मनाया जाता है, कहीं दशहरे से पहले ही रावण फूंक दिया जाता है तो कहीं रावण के दस चेहरों में से एक को गधे का बनाया जाता है। इसके पीछे अलग-अलग मान्यताएं हैं।

जोधपुर में रावण-मंदोदरी मंदिर में शोक का दिन

जोधपुर के मेहरानगढ़ किले की तलहटी में स्थित रावण और मंदोदरी का मंदिर इस दिन सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है। गोधा गोत्र के ब्राह्मणों द्वारा बनवाए गए इस मंदिर में रावण और मंदोदरी की विशाल प्रतिमाएं हैं, जिन्हें शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां बस गए थे। 2008 में बने इस मंदिर में दशहरे को शोक दिवस माना जाता है। यहां रावण दहन नहीं होता, बल्कि लोग स्नान कर जनेऊ बदलते हैं और रावण के दर्शन के बाद ही भोजन करते हैं। रावण को महान विद्वान और संगीतज्ञ मानते हुए आज भी संगीत के विद्यार्थी यहां आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।

कोटा में पैरों से मिट्टी का रावण रौंदने की परंपरा

राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में दशहरा एक अलग रंग में नजर आता है। कोटा के नांता इलाके में जेठी समाज के लोग हर साल मिट्टी का रावण बनाकर उसे पैरों से रौंदते हैं। इसे वे बुराई पर विजय का प्रतीक मानते हैं। करीब 150 साल पुरानी यह परंपरा हाड़ा राजाओं की देन बताई जाती है। राजाओं को कुश्ती का शौक था और इसी वजह से पहलवान जाति कहे जाने वाले जेठी समाज ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। नवरात्रि के दौरान यहां की महिलाएं और युवा गरबा नृत्य भी करती हैं, जो उनकी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।

जयपुर में अनोखे पुतले और समय से पहले दहन

जयपुर के आदर्श नगर में दशहरा विशेष होता है। यहां 105 फीट ऊंचा रावण का पुतला बनाया जाता है, जिसमें नौ सामान्य मुखौटों के बीच एक मुखौटा गधे का लगाया जाता है। मान्यता है कि अहंकार के कारण रावण मूर्ख हो गया था, इसलिए गधे का चेहरा जोड़ा जाता है। वहीं जयपुर के रेनवाल में दशहरे से पहले ही रावण दहन करने की परंपरा है।
राजस्थान में दशहरे की ये अनूठी परंपराएं न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि समाज की सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं की गहराई को भी दर्शाती हैं।