न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व न्यायाधीश गोवर्धन बाढदार की खण्डपीठ ने दुलीचंद भील व अन्य की याचिका पर यह आदेश दिया। प्रार्थीपक्ष की ओर से अधिवक्ता मनोज चौधरी ने कोर्ट को बताया कि 25 अगस्त 1965 को लोकुर कमेटी ने अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों की सूची पेश की। उसमें पहले स्थान पर भील और दूसरे स्थान पर चौकीदार मीना जाति का नाम था। 1976 में आरक्षण का आदेश जारी हुआ तो उसकी अधिसूचना में पहले स्थान पर भील जाति को ही रखा गया, इस जाति का वर्गीकरण भी किया गया है। दूसरे स्थान पर भील मीना और नौवें स्थान पर मीना जाति को रखा गया है। अनुसूचित जनजाति में शामिल होने के लिए पांच पैमाने हैं, लेकिन जो पैमाने हैं उनमें मीणा वर्ग के परिवार शामिल नहीं हैं।
नियमित समीक्षा के निर्देश देने का आग्रह याचिका में आग्रह किया गया है कि जनजाति मंत्रालय को जनजाति में शामिल जातियों की नियमित समीक्षा करने का निर्देश दिया जाए। इन जातियों का सर्वे करवाकर राज्य सेवा में प्रतिनिधित्व, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक प्रतिनिधित्व देखा जाए। किसी जाति का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो तो उसको आरक्षण से बाहर कर दिया जाए। केन्द्र सरकार की ओर से अधिवक्ता आनंद शर्मा ने दोहराया कि जाति प्रमाण पत्र राज्य सरकार जारी करती है। दस्तावेजों के अनुसार अनुसूचित जनजाति में मीना जाति ही शामिल है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मीणा और मीना जाति में अंतर के बारे में जानने का प्रयास किया। साथ ही, समान मुद्दे को लेकर एकलपीठ में सुनवाई के लिए लग रही पांच याचिकाओं को भी इसी याचिका के साथ लगाने का आदेश दिया।