
Martyr Devkaran Singh Burdak
राजस्थान के झुंझुनूं जिले से सबसे अधिक जवान सेना में भर्ती होते हैं। इसी जिले की शहीदों की फेहरिस्त में शामिल देवकरण सिंह बुरड़क ने सरहद की रक्षा करते हुए अपने जान को देश के लिए न्यौछावर कर दिया। 26 जनवरी को अब सिर्फ 2 दिन बाकी है। 26 जनवरी के दिन देश की सरकार और जनता अपने शहीदों को याद करती है। उनके सम्मान में कई कार्यक्रम करती है। इस अवसर पर देवकरण सिंह बुरड़क की शहादत को याद कर आंखें आंसू से भर गई। पर साथ ही गर्व के साथ सीना भी चौड़ा हो जाता है। जरा याद करो कुर्बानी के तहत आज हम राजस्थान के एक और रणबांकुरे नायब सूबेदार देवकरण सिंह बुरड़क के बारे में जानेंगे।
कारगिल की ऊंची पहाड़ी पर तैनात थे देवकरण सिंह
देवकरण सिंह बुरड़क शेखावाटी के झुंझुनूं जिले के कालियासर ग्राम पंचायत के ढाणी बुरकड़ान के निवासी थे। कारगिल की ऊंची पहाड़ी पर 'ऑपरेशन रक्षक' के तहत देवकरण सिंह तैनात थे। वह बेहद चौकसी के साथ सीमाओं की रक्षा कर रहे थे। साथ ही अपने साथियों का भी उत्साहवर्धन करते रहते थे। बेहद मुश्किल भरे मौसम में देवकरण सिंह कोई भी कोताही नहीं बरत रहे थे। पर मौसम का क्या कहा जा सकता है। अचानक भारी बर्फबारी शुरू हो गई। इस बर्फबारी से देवकरण सिंह की तबीयत ज्यादा खराब हो गई। वह दिन 13 फरवरी 2023 का था। गंभीर हालत में सीएचसी उधमपुर लाया गया। जहां पर रविवार को इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। देवकरण सिंह की उस वक्त उम्र 40 वर्ष थी।
यह भी पढ़ें - 24 दिन तक सही पाकिस्तानी सैनिकों की बर्बर यातनाएं, रूह कंपा देगी बनवारी लाल बगड़िया की कहानी
शहीद की विदाई से लोगों की आंखों में आए आंसू
जब यह सूचना घर पहुंची तो पूरे गांव में गर्व भरी उदासी छा गई। हर तरफ शहीद नायब सूबेदार देवकरण सिंह के नाम के नारे लगाए जा रहे थे। करीब 9 किमी लंबी तिरंगा यात्रा निकाली गई। उनकी पत्नी अंजू शहीद के पार्थिव शव के साथ ट्रक में बैठ गांव पहुंची। अंजू ने शहीद पति की पार्थिव शव के सामने सुहाग की निशानी चूड़ियां और माथे की बिंदिया उतारी और उन्हें विदा किया। दोनों बेटों निखिल और कुनाल ने अपने पिता शहीद देवकरण सिंह उनको मुखाग्नि दी। इसके बाद उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।
सेना में है पूरा परिवार
जेसीओ देवकरण सिंह बुरड़क करीब 22 साल पहले सेना के 15 जाट रेजिमेन्ट में भर्ती हुए थे। पिता बोईतराम भी भारतीय सेना में पूर्व सैनिक हैं। शहीद के बडे़ व छोटे भाई भी सेना में हैं।
बहुत याद आते हैं...
आज भी जब गांव में देवकरण सिंह बुरड़क की चर्चा चलती है। तो सभी एक सुर में बताते हैं कि वे बेहद शांत और मिलनसार स्वभाव के थे। जब भी गांव आते तो चौपाल पर बैठ सभी गांव वालों का हालचाल लेते थे। उनको याद कर सभी की आंखें भर गई थी।
यह भी पढ़ें - पिता के बाद बेटे ने ज्वाइन की इंडियन आर्मी, शहीद होने के डेढ़ महीने बाद घर पहुंचा था पार्थिव शरीर
Updated on:
24 Jan 2024 10:44 am
Published on:
24 Jan 2024 10:41 am
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
