डिस्कॉम ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला तो दिया है लेकिन इसमें कहीं भी अंकित नहीं है कि यह राशि फ्यूल सरचार्ज के रूप में ही वसूली जाए। फ्यूल सरचार्ज के जरिए उपभोक्ताओं की जेब से पैसे निकालने का मुख्य कारण यह है कि यदि टैरिफ में इसे जोड़ा जाता तो उससे पहले जनसुनवाई करनी होती और उसमें लोगों की आपत्ति का सामना करना होता।
डिस्कॉम ने जनसुनवाई से बचने के लिए इसका तोड़ निकाल लिया और उपभोक्ताओं से तीन साल यानी 36 माह तक 5 पैसे प्रति यूनिट वसूलने के आदेश जारी कर दिए हैं। अब इस पर सवाल उठने लगे हैं। गौरतलब है कि राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग ने पिछले दिनों ही 5 पैसे प्रति यूनट वसूलने के आदेश जारी किए हैं।
देेने पड़ते जवाब, इसलिए जनता दरकिनार
राशि टैरिफ में शामिल करने से पहले विद्युत विनियामक आयोग में जनसुनवाई अनिवार्य है। जिसकी सार्वजनिक सूचना भी जारी करनी पड़ती है। आपत्ति आने पर प्रकाशन होता है। डिस्कॉम को आपत्ति का निस्तारण करना जरूरी होता है। इसलिए जनता के सवालों का जवाब न देना पड़े इसलिए डिस्कॉम्स से प्यूल सरचार्ज के रूप में गली निकाल ली।
पहले राशि देने पर नहीं थे राजी
अडानी पॉवर राजस्थान लि. ने डिस्कॉम से कोयले की दर में अंतर आने के 2288.40 करोड़ रुपए मांगे, लेकिन डिस्कॉम इस राशि पर रजामंद नहीं हुआ। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां अडानी पॉवर के पक्ष में फैसला हुआ। इसमें मूल राशि के साथ 420.96 करोड़ रुपए ब्याज के भी जोड़े गए, जो 2709.36 करोड़ रुपए हुआ।
उर्जा विभाग के प्रमुख शासन सचिव नरेशपाल गंगवार से बातचीत…
उपभोक्ताओं से फ्यूल सरचार्ज क्या नियमों के अनुसार लिया जा रहा है?
गंगवाल: हमारी मंशा रहती है कि जनता पर ज्यादार भार नहीं पड़े, लेकिन यहां जरूरी था इसलिए ऐसा किया गया।
फ्यूल सरचार्ज के रूप में ही क्यों, टैरिफ के जरिए क्यों नहीं ले रहे?
गंगवाल: यह मामला 2013 से 2017 के बीच का है, इसलिए भी टैरिफ के जरिए संभवतया इसे नहीं लागू नहीं किया जा सकता था।
टैरिफ के जरिए होता तो पहले जनसुनवाई होती, इससे बचने के लिए तो ऐसा नहीं किया?
गंगवाल: ऐसा नहीं है। विद्युत विनियामक आयोग ने सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही
फ्यूल सरचार्ज के रूप में राशि लेने के आदेश दिए हैं।
क्या इस मामले में दोबारा विनियामक आयोग के पास जा सकते हैं?
गंगवाल: इसका कुछ फायदा नहीं होगा, फिर भी संबंबंधित अफसरों से राय लेंगे।