
Rajasthan Ram Mandir: राजधानी में अलग-अलग दिशाओं और कोनों में स्थापित प्रभु राम के मंदिरों में प्रमुख है जयपुर स्थापना के समय छोटी चौपड़ स्थित सीतारामजी का मंदिर। करीब 296 साल पुराने इस मंदिर को उस दौर में शहर के नगर सेठ रहे लूणकरण भिखारीदास नाटाणी ने विक्रम सवंत 1784 में बनवाया था।
वास्तु शास्त्रीय ग्रन्थों के अनुसार 4200 वर्ग गज जमीन पर भारतीय स्थापत्य कला की विशिष्ट शैली में बनवाए गए इस मंदिर के निर्माण पर तब करीब 300 सोने की मोहरों की लागत आई थी। करीब साढ़े पांच वर्ष में बनकर तैयार हुए मंदिर में सीतारामजी के दो विग्रह (चल और अचल) हैं। काले पत्थर से निर्मित विग्रह चल और अष्टधातु से निर्मित विग्रह अचल है। इस विग्रह में प्रभु राम चांदी का धनुष थामे हैं।
लूणकरण जयपुर के तत्कालीन राजदरबार में नवरत्नों में से एक थे। मंदिर की सेवा पूजा का जिम्मा विक्रम संवत 1889 तक नाटाणी परिवार के वंशजों के पास ही रहा। इसके बाद यह जिम्मेदारी महंत गोपालदास को दी गई। पूर्वाभिमुख यह मंदिर ऊंचाई पर स्थित है। इसका उद्घाटन तत्कालीन महाराजा जयसिंह ने किया। यह मंदिर सूर्यवंशी है। इसकी खास विशेषता है कि प्रतिदिन सुबह सूरज की किरणें सीधे प्रभु राम के चरणों पर पड़ती हैं। मंदिर में सभी वर्गो की विवाह की ध्वजा चढ़ती है। गर्भगृह में सोने की कारीगरी की गई। प्रभु राम, सीता, कृष्ण और राधा यहां विराजमान हैं। निर्माण के समय से ही इसे राजधानी की अयोध्या नगरी कहा जाने लगा था।
दर्शनों के लिए पहुंचते थे तत्कालीन महाराजा
मंदिर को जयपुर रियासत के पोथीखाना विभाग से कुछ भेंट मिलती थी। रियासत के पुराने दस्तावेजों में इसका उल्लेख है। कई इतिहासकारों ने भी अपने संस्मरणों में इसका जिक्र किया है। तत्कालीन महाराजा जयसिंह प्रभु सीताराम के दर्शनों के लिए नियमित मंदिर आते थे। रियासतों के एकीकरण के बाद मंदिर के लिए दी जाने वाली रकम में रुकावट आ गई। जयसिंह ने मंदिर में एक रुपया रोजाना भोग खर्च के साथ ही समस्त समाज को ध्वजा की भी आज्ञा प्रदान की थी। महाराजा प्रतापसिंह का भी मंदिर से लगाव रहा। वर्तमान में मंदिर के महंत नंदकिशोर शर्मा हैं।
Published on:
20 Jan 2024 12:05 pm
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