
सांकेतिक तस्वीर
जितेन्द्र सिंह शेखावत
रियासतकाल के दौर में रक्षा बंधन पर बांधे जाने वाला रक्षा सूत्र करीब पंद्रह दिन पहले हरियाली अमावस को विद्वतजन वैदिक मंत्रोचारण के साथ तैयार करते थे। इसके लिए रोली में केवड़ा आदि के सुगन्धित द्रव्यों के मिश्रण से सफेद सूत को रंग कर रक्षा सूत्र बनाया जाता था। वर्तमान में अनेक प्रकार की फैंसी राखियां बनती हैं। पुराने समय में इस प्रक्रिया से बने रक्षा सूत्र का नाम राम राखी था। तब महाराजा और समस्त प्रजा में राम राखी का ही विशेष प्रचलन था।
ठिकाना श्री गोविंद देव जी, गलता, बालानंदजी, लाडलीजी व राज गुरु ओझा आदि संत महंत महाराजा को रक्षासूत्र बांधने के लिए पालकियों में बैठकर सिटी पैलेस के दीवाने खास में आयोजित राखी के दरबार में पहुंचते थे। इतिहास के जानकार देवेन्द्र भगत के मुताबिक सवाई माधोसिंह द्वितीय के गंभीर रूप से बीमार होने पर महंत व राजगुरु उनके महल में रक्षा सूत्र बांधने पहुंचे थे।
उस समय राय बहादुर अविनाश चन्द्र सेन व मुंशी नंद किशोर सिंह ने महंतों की अगवानी की थी। सवाई जयसिंह को गुरु जगन्नाथ सम्राट रक्षासूत्र बांध कर आशीर्वाद देते थे। बाद में जगन्नाथ सम्राट के वंशज बैजनाथ व गुरु पौंडरिक के वंशज गोबिन्द धर राजाओं को रक्षासूत्र बांधते रहे।
जयपुर रियासत में एक सौ साल के बाद वर्ष 1931 में तत्कालीन महाराजा मान सिंह द्वितीय के पुत्र भवानी सिंह का जन्म हुआ था। तब रक्षा बंधन पर दस माह के भवानी सिंह की कलाई पर उनकी बहन प्रिंसेज प्रेम कुमारी ने राखी बांधी थी। सवाई मान सिंह की बहन गोपाल कंवर ने ससुराल पन्ना रियासत से भाई मानसिंह को रामबाग में राखी भेजी थी। राखी बंधाई पर मान सिंह ने पन्ना रियासत में बहन को चार सौ रुपये का राखी मनी ऑर्डर भेजा था। तत्कालीन महारानी व राजमाता अपने भाइयों को स्वर्ण मोहर के साथ राखी का दस्तूर जिमेदार जागीरदार के साथ भेजती थीं। 17 अगस्त 1940 को पं. गोकुल नारायण ने जनानी ड्योढी में राखी पूजन किया था।
सवाई राम सिंह की महारानी रीवा की बघेली जी व धान्ध्रा की रानियां ने संदेश वाहक के साथ अपने पीहर राखी भेजी थी। सवाई मानसिंह की महारानी मरुधर कंवर ने आला अफसर मुकीम चंद्र के साथ जोधपुर स्थित पीहर एवं तीसरी महारानी गायत्री देवी ने कामां के राजा प्रताप सिंह के साथ कूच बिहार राखी भेजी थी।
Published on:
19 Aug 2024 12:26 pm
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