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लखनऊ उतरते ही पुलिस ने पकड़ा, जेल में गुजारी 12 रातें, 33 साल पूरानी घटना को याद कर भावुक हुए जयपुर कारसेवक

कहानी तीन दशक पूरानी है। लेकिन आज भी इसे याद कर जयपुर निवासी, कारसेवक रामलाल बागड़ा उर्फ रामू पण्डा की भावुकता से आंखे भर जाती है। वर्ष 1990 में कस्बे से दो जन अयोध्या कार सेवा में गए थे।

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कार सेवक विजय सिंह उदावत की फाइल फोटो

बगरू। कहानी तीन दशक पूरानी है। लेकिन आज भी इसे याद कर जयपुर निवासी, कारसेवक रामलाल बागड़ा उर्फ रामू पण्डा की भावुकता से आंखे भर जाती है। वर्ष 1990 में कस्बे से दो जन अयोध्या कार सेवा में गए थे। अब मंदिर में रामलला की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो दोनों ने अपने संस्मरण पत्रिका से साझा किए तथा बताया कि किस जोश से यहां से रवाना हुए, लेकिन वहां तक पहुंचने में क्या-क्या पीड़ा सहन नहीं की।

कस्बे निवासी 54 वर्षीय रामलाल बागड़ा उर्फ रामू पण्डा ने बताया कि वर्ष 1990 की बात है, जब उन्होंने अयोध्या जाने वालों में अपना नाम लिखाया। 35 फार्म भरे गए थे। लेकिन जब अयोध्या रवाना होने की बारी आई तो सिर्फ अकेले बचे। अंतत: सांगानेर स्टेशन से अयोध्या के लिए रवाना हुए। मन उत्साह से भरा था, पर जैसे ही लखनऊ रेलवे स्टेशन पर पहुंचे, पुलिस फोर्स ने रोक दिया। वहां से हमलोगों को बस में बैठाकर उन्नाव ले जाया गया जहां पहले से ही जेल पूरी तरह से भरी हुई थी।

12 दिनों तक खुली जेल में रहे

इस दौरान सभी कार सेवक करीब दस से बारह दिन वहीं ओपन जेल में रहे। माहौल शांत होने पर 12वें दिन सभी को अयोध्या जाने व देखने के लिए ओपन जेल का सर्टिफिकेट बनाकर टिकट बनाया गया। उन्नाव से अयोध्या पहुंचे, जहां आश्रम में रहे तथा सरयू में नहाकर रामलला के दर्शन किए। इसके बाद 16वें दिन जयपुर आ गए। गांव आने पर ग्रामीणों ने गाजे-बाजे के साथ स्वागत किया।

1992 में फिर पहुंचे अयोध्या

रामलाल बागड़ा ने बताया कि इसके बाद वर्ष 1992 में फिर नेमीचंद शर्मा व विजयसिंह उदावत के साथ अयोध्या में कार सेवा के लिए पहुंचे। जयपुर से उनको तीन-तीन सौ रुपए देकर रवाना किया गया। वहां पहुंचकर दीपक जलाकर दिवाली जैसा त्योहार मनाया गया था। जब खुशी से जयपुर लौट रहे थे तो लोगों ने जगह-जगह अभिनंदन किया। अब उनका सपना साकार हो रहा है। हालांकि उनको अभी तक कोई निमंत्रण जैसी सूचना नहीं मिली है, लेकिन फिर भी वो बेहद खुश नजर आ रहे हैं।

18 वर्ष के भी नहीं थे विजयसिंह उदावत


वहीं विजयसिंह उदावत ने बताया कि उस समय उनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी। उनके पिता के गुरु महाराज भी अयोध्या में रहते थे। जिसे भी अयोध्या से लगाव था, वह वहां जाने को बेहद उत्सुक थे। उन्होंने कहा कि 28 नवंबर 1992 को सुबह बगरू से स्व.अनिल व्यास की प्रेरणा से नेमीचंद शर्मा व रामू पण्डा के साथ जयपुर के लिए रवाना हुए। वहां से दोपहर डेढ़ बजे अयोध्या के लिए मरुधर एक्सप्रेस ट्रेन ली। 29 नवंबर को सुबह 7 बजे पहुंच गए थे। वहीं पर आदर्श विद्या विद्यालय में रोका गया तथा रहने व खाने के लिए व्यवस्था की गई थी। 6-7 दिन बाद पूरे भारत में माहौल बिगड़ गया। इसके बाद हमलोग 8 दिसंबर की सुबह वापस बगरू आ गए आज उनके सामने ही उनका बरसों पुराना सपना मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के साथ साकार हो रहा है। कार सेवक नेमीचंद शर्मा जो कि वह अभी बगरू से बाहर ही रहते हैं।

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