
राजधानी में रियल एस्टेट का एक बड़ा सच यह है कि जेडीए से अनुमोदित कॉलोनियों की जगह अब तेजी से सोसाइटी पट्टे पर विकसित की जा रही गैर-अनुमोदित कॉलोनियां आकार ले रही हैं। जेडीए की पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बजाय अनुमोदित क्षेत्र के सिर्फ एक-चौथाई हिस्से में सोसाइटी के नाम पर कॉलोनी विकसित कर देते हैं, जिससे उन्हें जेडीए को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता।
जेडीए से अनुमोदन लेने पर कॉलोनी की लागत बढ़ जाती है। जेडीए कॉलोनी में भूखंड की कीमत औसत खर्चा 5000 से 5500 रुपए प्रति वर्ग गज (लोकेशन के हिसाब से कीमत बढ़ सकती है) तक पहुंच जाता है। इसके साथ ही विकासकर्ता को सडक़, सीवरेज, ड्रेनेज, पार्क से लेकर पानी और स्ट्रीट लाइट जैसी मूलभूत सुविधाएं विकसित करनी होती हैं। इतना ही नहीं, जेडीए इन कॉलोनियों के भूखंड भी गिरवी रख लेता है। जैसे-जैसे विकास कार्य कॉलोनी में होते हैं और जेडीए भूखंडों को मुक्त करता जाता है।
वहीं, अवैध कॉलोनियों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। १००० रुपए से १२०० रुपए प्रति वर्ग गज का खर्चा आता है और कई गुना मुनाफे में बेचान करते हैं।
नगर नियोजन से जुड़े लोगों की मानें तो शहर में बढ़ती अवैध कॉलोनियां न केवल जेडीए की नियोजन व्यवस्था को कमजोर कर रही हैं, बल्कि आमजन को भी सस्ते सपनों के नाम पर लंबे समय की परेशानी सौंप रही हैं।
सुविधा क्षेत्र भी नहीं मिलता
अवैध कॉलोनियों में सोसाइटी पट्टे से बेचान कर दिया जाता है। यहां ग्राहकों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलतीं। सडक़ों भी मानकों के अनुरूप रूप नहीं होती। इसके अलावा पार्क से लेकर अन्य सुविधा क्षेत्र भी नहीं मिलते। १०० फीसदी जमीन में से सडक़ों को छोडक़र शेष जमीन पर भूखंड सृजित कर बेचान कर दिया जाता है।
कॉलोनी सृजित होने के बाद होती राजनीति
वोट बैंक के लिए नेता इन अवैध कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाएं विकसित कराने के लिए जेडीए और नगर निगम पर दबाव बनाते हैं। आगरा रोड पर नगर निगम सीवर लाइन का काम कर रहा है। वहीं, कई जगह जेडीए ने भी सडक़ बना दी है। यही हाल दिल्ली रोड पर जयसिंहपुरा खोर के आस-पास है।
Published on:
29 Dec 2025 05:42 pm
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