scriptचित्तौड़ दुर्ग में आज भी होती है महारानी ‘पद्मावती‘ की पूजा, भक्त प्रतिमा पर चढ़ाते हैं लाल चुनरी | Rani Padmavati Mahal in Chittorgarh Rani Padmini Mandir | Patrika News

चित्तौड़ दुर्ग में आज भी होती है महारानी ‘पद्मावती‘ की पूजा, भक्त प्रतिमा पर चढ़ाते हैं लाल चुनरी

locationजयपुरPublished: Nov 11, 2017 11:42:21 am

Submitted by:

dinesh

मंदिर में बनी महारानी पद्मिनी की प्रतिमा कांच में अपना चेहरा देखते हुए कुछ सोच रही हैं…

Padmavati Temple
जयपुर। फिल्म पद्मावती दिसंबर में रिलीज होने वाली है। फिल्म में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी को अलाउद्दीन खिलजी की प्रेमिका बताने की आशंका से देशभर में विवाद छिड़ा हुआ है। फिल्म का चारों और जबरदस्त विरोध हो रहा है। फिल्म में चाहे जो फिल्मांकन हुआ है, लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि आज भी महारानी पद्मिनी को चित्तौड़ दुर्ग पर पूजा जाता है। दुर्ग स्थित गौमुख कुंड के पास ऋषि व पाŸवनाथ मंदिर में ही महारानी पद्मिनी की काल्पनिक प्रतिमा बनी हुई है। जहां रानी पद्मिनी को अब देवी व माता की तरह पूजा जाता है। मंदिर में सुबह-शाम रानी पद्मिनी की प्रतिमा की आरती होती है। इसके अलावा यहां निरंतर दीपक भी जलाया रखा है। गौमुख कुंड के पास ऋषि व पाŸवनाथ मंदिर स्थित सुरंग के दरवाजे के पास ही माता की प्रतिमा को देखने पर्यटक आते हैं।

कांच में खुद का चेहरा देख रही है पद्मिनी
चित्तौडग़ढ़ के अभेद दुर्ग में गौमुख कुंड के पास जो मंदिर बना हुआ है उस मंदिर में बनी महारानी पद्मिनी की प्रतिमा कांच में अपना चेहरा देखते हुए कुछ सोच रही हैं। हल्के भूरे रंग के पत्थर पर उकेरी गई महारानी पद्मिनी की यह प्रतिमा करीब 700 साल पुरानी बताई जाती है। प्रतिमा भी इतनी आकर्षक है कि इसे देखने वाले एकटक देखते रह जाते हैं। माता का दर्जा देते हुए कई भक्त इस प्रतिमा पर चुनरी भी चढ़ाते हैं। बताया जाता है कि मंदिर से जा रही सुरंग कुंभा महल तक जाती है। हालांकि इसे अभी बंद कर रखा है।
आक्रमण के समय महारानी ने किया था जौहर
मेवाड़ के रावल रतनसिंह की पत्नी रानी पद्मिनी का भारत के जनमानस में एक विशिष्ट वीरांगना और सतीनारी के रूप में शाश्वत स्थान है। सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय महारानी पद्मिनी ने हजारों नारियों के साथ जौहर कर लिया था।
चित्तौडग़ढ़ के किले के जिस जौहर कुंड में रानी पद्मिनी ने छलांग लगाई थी, आज उस कुंड की ओर जाने वाला रास्ता बेहद अंधेरे वाला है। यहां तक कि रास्ते की दीवारों में आज भी कुंड की अग्नि की वो गर्माहट महसूस की जा सकती है। जिस किसी ने भी इस कुंड के करीब जाने की कोशिश की है, उसे बेहद आपत्तिजनक अहसास का सामना करना पड़ा है। यह स्थान नकारात्मक शक्तियों से पूरित माना गया है। इतिहासकारों के अनुसार इस कुंड में छलांग लगाने वाली सबसे पहली रानी पद्मिनी ही थीं। उनके बाद एक-एक करके सभी रानियों एवं शहीद सैनिकों की पत्नियों ने जौहर कुंड में खुद को झोंक दिया।
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