कांच में खुद का चेहरा देख रही है पद्मिनी
चित्तौडग़ढ़ के अभेद दुर्ग में गौमुख कुंड के पास जो मंदिर बना हुआ है उस मंदिर में बनी महारानी पद्मिनी की प्रतिमा कांच में अपना चेहरा देखते हुए कुछ सोच रही हैं। हल्के भूरे रंग के पत्थर पर उकेरी गई महारानी पद्मिनी की यह प्रतिमा करीब 700 साल पुरानी बताई जाती है। प्रतिमा भी इतनी आकर्षक है कि इसे देखने वाले एकटक देखते रह जाते हैं। माता का दर्जा देते हुए कई भक्त इस प्रतिमा पर चुनरी भी चढ़ाते हैं। बताया जाता है कि मंदिर से जा रही सुरंग कुंभा महल तक जाती है। हालांकि इसे अभी बंद कर रखा है।
आक्रमण के समय महारानी ने किया था जौहर
मेवाड़ के रावल रतनसिंह की पत्नी रानी पद्मिनी का भारत के जनमानस में एक विशिष्ट वीरांगना और सतीनारी के रूप में शाश्वत स्थान है। सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय महारानी पद्मिनी ने हजारों नारियों के साथ जौहर कर लिया था।
मेवाड़ के रावल रतनसिंह की पत्नी रानी पद्मिनी का भारत के जनमानस में एक विशिष्ट वीरांगना और सतीनारी के रूप में शाश्वत स्थान है। सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय महारानी पद्मिनी ने हजारों नारियों के साथ जौहर कर लिया था।
चित्तौडग़ढ़ के किले के जिस जौहर कुंड में रानी पद्मिनी ने छलांग लगाई थी, आज उस कुंड की ओर जाने वाला रास्ता बेहद अंधेरे वाला है। यहां तक कि रास्ते की दीवारों में आज भी कुंड की अग्नि की वो गर्माहट महसूस की जा सकती है। जिस किसी ने भी इस कुंड के करीब जाने की कोशिश की है, उसे बेहद आपत्तिजनक अहसास का सामना करना पड़ा है। यह स्थान नकारात्मक शक्तियों से पूरित माना गया है। इतिहासकारों के अनुसार इस कुंड में छलांग लगाने वाली सबसे पहली रानी पद्मिनी ही थीं। उनके बाद एक-एक करके सभी रानियों एवं शहीद सैनिकों की पत्नियों ने जौहर कुंड में खुद को झोंक दिया।