हजारों तंत्र हो मुझ में हजारों मंत्र हो मुझ में मैं फिर भी लीन रहूं तुझ में। न ज्ञान का अहंकार हो मुझ में न अज्ञान का भंडार हो मुझ में
मैं फिर भी लीन रहूं तुझ में। योग का भंडार हो मुझ में तत्व का महाज्ञान हो मुझ में मैं फिर भी लीन रहूं तुझ में। न जीत का
एहसास हो मुझ में न हार का हृास हो मुझ में मैं फिर भी लीन रहूं तुझ में। न जीवन की चाह हो मुझ में न मृत्यु की राह हो मुझ में
मैं फिर भी लीन रहूं तुझ में।