
जयपुर
हाईकोर्ट ने 2011 की भर्ती के तहत नौकरी कर रहे रोडवेज के 552 परिचालकों को राहत दी है। कोर्ट ने इनको नौकरी में बनाए रखने का आदेश दिया है। न्यायाधीश अशोक कुमार गौड़ ने इस मामले में प्यारेलाल ढाका व अन्य की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया है। प्रार्थीपक्ष की ओर से कहा गया था कि हाईकोर्ट ने 2011 की भर्ती के तहत परिचालक के पद के लिए चालक के टेस्ट से छूट दे दी थी और उसके स्थान पर लिखित परीक्षा के अंकों को ढाई गुणा करने का आदेश दिया था।
लाभ देने का आदेश
एकलपीठ ने उस समय तक कोर्ट आने वालों को ही इसका लाभ देने को कहा, लेकिन हाईकोर्ट की खण्डपीठ ने आदेश का लाभ सभी को देने के निर्देश दिए। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर 6032 चयनित अभ्यर्थियों का लाभ देने का आदेश हो गया।
हडताल ने सब कुछ बदल दिया
अवमानना याचिका के जरिए मुकदमेबाजी का दूसरा दौर शुरु हुआ। इससे रोडवेज हरकत में आया और 552 परिचालकों को नौकरी से बाहर करने का निर्णय किया, प्रभावित परिचालक हाईकोर्ट पहुंचे तो खण्डपीठ ने खाली पदों पर समायोजित करने को कहा। इसी बीच कोर्ट ने रोडवेज प्रबन्ध निदेशक से खाली पदों को भरने की योजना पूछी, तो शपथपत्र आया कि 400 करोड़ रुपए का घाटा है इसलिए भर्तियां नहीं की जाएंगी। परन्तु अब जैसे ही रोडवेज कर्मचारियों ने हड़ताल की तो प्रबन्धन ने खाली पदों को जल्द भरने का लिखित समझौता कर लिया। इससे रोडवेज प्रबन्धन फंस गया और कोर्ट ने इस समझौते को ध्यान में रखते हुए 552 परिचालकों को नौकरी से निकालने का आदेश रद्द कर दिया।
नौकरी से हटाना उचित नहीं है
कोर्ट ने यह भी माना कि चयन के 8 साल बाद नौकरी से निकालना ठीक नहीं है। यह था कर्मचारियों का तर्क 552 परिचालकों की ओर से अधिवक्ता अनूप ढण्ड ने कोर्ट को बताया कि अब इन परिचालकों में से कई नियुक्ति के लिए निर्धारित आयु पार करने के कारण पुन: आवेदन करने के लिए पात्र नहीं रहे हैं। ऐसे में नौकरी से हटाना उचित नहीं है।
461 का पहले हो चुका चयन
पहले दौर की मुकदमेबाजी के कारण रोडवेज को 461 नए अभ्यर्थियों का चयन करना पड़ा था।
Published on:
20 Sept 2018 05:29 am
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