प्रदेश में 3 जनवरी 1988 को सती निवारण अधिनियम लागू हुआ, लेकिन इसका असर देशभर में हुआ। रूप कंवर के सती होने की पहली बरसी पर 1988 में दिवराला गांव में चुनरी महोत्सव का आयोजन हुआ। इसमें हजारों लाेग शामिल हुए थे। इसे सती का महिमामंडन मानते हुए 45 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
समाज के लोगों ने घटना के बाद सती माता का दर्जा दिया और उनकी स्मृति में मंदिर भी बनाया। जो आज एक छोटे ढांचे के रूप में है। जहां भी लोग दबे-छिपे पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद राजपूत समाज ने 16 सितंबर को दिवराला गांव में चिता स्थल पर चुनरी महोत्सव की घोषणा कर दी। यह देशभर में चर्चा का विषय बन गया।
हाईकोर्ट ने समारोह पर लगा दी थी रोक
उस समय कई संगठन समारोह को सती प्रथा का महिमामंडन बताते हुए उसके विरोध में उतरे। सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने समारोह को रोकने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा के नाम चिट्ठी लिखी। जस्टिस वर्मा ने 15 सितंबर को चिट्ठी को ही जनहित याचिका मानकर समारोह पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमामंडन माना। साथ ही सरकार को आदेश दिया कि यह समारोह किसी भी स्थिति में न हो। रोक के बावजूद दिवराला गांव में 15 सितंबर की रात से ही लोग जमा होने लगे। गांव में बाहर से भी हजारों लोग चुनरी महोत्सव के लिए इकट्ठा हुए।
राज्य सरकार को लाना पड़ा था अध्यादेश
रूप कंवर सती कांड से राजस्थान की देशभर में आलोचना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने गृह मंत्री गुलाब सिंह शक्तावत की अध्यक्षता में कमेटी गठित की। राज्य सरकार एक अक्टूबर 1987 को सती निवारण और उसके महिमामंडन को लेकर एक अध्यादेश लाई। अध्यादेश के तहत किसी विधवा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती होने के लिए उकसाने वालों को फांसी या उम्र कैद की सजा देने और ऐसे मामलों को महिमामंडित करने वालों को सात साल कैद और अधिकतम 30 हजार रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान रखा गया था। बाद में सती (निवारण) अधिनियम को राजस्थान सरकार ने 1987 में कानून बनाया, जो जनवरी 1988 में लागू हुआ।