राजस्थान के रेगिस्तान में ऊंटों की ताकत के आगे हारी मशीनों की ताकत
मशीनें वैसे तो बहुत ताकतवर होती है, लेकिन कई बार मशीनों की ये ताकत जानवरों के सामने भी बौनी साबित हो जाती है।

सुरेश व्यास/जयपुर। मशीनें वैसे तो बहुत ताकतवर होती है, लेकिन कई बार मशीनों की ये ताकत जानवरों के सामने भी बौनी साबित हो जाती है। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों से सटी भारत पाकिस्तान सीमा पर ऐसा ही हुई है। अन्तरराष्ट्रीय सीमा की निगरानी के लिए
रेगिस्तान के जहाज ऊंटों के विकल्प के तौर पर लाए गए लाखों रुपए कीमत के सैंड
स्कूटर ऊंटों की ताकत के आगे हार गए।
राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों के चार जिलों बाड़मेर-जैसलमेर व बीकानेर गंगानगर के साथ लगी है लगभग 1200 किलोमीटर लम्बी अन्तरराष्ट्रीय सीमा। इसकी निगरानी का जिम्मा है दुनिया के सबसे बड़े अर्द्ध सैनिक बल बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स यानी बीएसएफ के पास। वजूद में आने के बाद से बीएसएफ ऊंटों पर सवार होकर रेत के समंदर में फैली भारत-पाकिस्तान पर गश्त करते रहे हैं, लेकिन पांच साल पहले इलाके की भौगोलिक परिस्थितयों का हवाला देकर बीएसएफ ने सैंड स्कूटर पर हाथ आजमाने की सोची।
ट्रायल के बाद तैनाती
केंद्र सरकार की हरी झण्डी मिलने के बाद बीएसएफ ने कई अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों के सैंड स्कूटर्स की ट्रायल की। स्कूटर्स को रेत के टीलों पर परखा गया। आखिर जैसलमेर ? से सटी अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर गश्त के लिए दो सैंड स्कूटर्स तैनात किए गए। प्रायोगिक तौर पर लगाए गए ये स्कूटर थार के रेगिस्तान और विषम भौगोलिक परिस्थितियों में हांफने लगे हैं।
गर्मी ने छुड़ा दिया पसीना
लगभग छह से सात लाख रुपए लागत वाला सैंड स्कूटर ताकतवर है। इस पर रात को भी
गश्त हो सकती है, लेकिन 40 किलोमीटर की रफ्तार से धोरों पर दौड़ने में सक्षम सैंड स्कूटर की ताकत गर्मी में 50 डिग्री तक पहुंच जाने वाले तापमान में पस्त होने लगती है। रात्रिकालीन गश्त को प्रभावी बनाने के लिए सैंड स्कूटर से गश्त का फैसला किया था, लेकिन यह उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं दे पाया। ऐसे में बीएसएफ को एक बार फिर अपने विश्वसनीय साथी ऊंट पर ही भरोसा करना पड़ रहा है। हालांकि जैसलमेर के शाहगढ़ बल्ज इलाके में सैंड स्कूटर्स अब भी तैनात हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल वीवीआईपी विजिट तक ही सीमित रह गया है।
चार सौ से ज्यादा ऊंट
राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर व बाड़मेर से सटी अंतरराष्ट्रीय सरहद पर बीएसएफ के पास 400 से ज्यादा ऊंट हैं। ये ऊंट बीएसएफ की स्थापना के साथ ही सीमा प्रहरियों के साथी रहे हैं। ऊंटों की बदौलत ही आज बीएसएफ के पास दुनिया का एक मात्र कैमल माउंटेड बैंड हैं। ऊंटों को सैंड स्कूटर के साए में धुंधला करने की कवायद जब फीकी पड़ने लगी है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि ऊंटों के दिन एक बार फिर आएंगे और वे बने रहेंगे सीमा सुरक्षा बल का पर्याय..न सिर्फ आज बल्कि आने वाले कई बरसों तक।
फैक्ट फाइल
-जैसलमेर सीमा पर वर्ष 2015 से चल रहा है सैंड स्कूटर का प्रयोग
-40 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से रेत के धोरों पर चला है सैंड स्कूटर
-साल 2012 से चल रही है सैंड स्कूटर से गश्त करवाने की कवायद
-एक सैंड स्कूटर पर सवार हो सकते हैं 4 से 6 सीमा प्रहरी
-चीन के नैबुला जगुआर समेत कई सैंड स्कूटर दे चुके हैं डेमो
-प्रयोग में उम्मीदों के अनुरूप नहीं दे पाए नतीजे
-अब ऊंटों की नफरी बढ़ाने पर ही बीएसएफ करेगा विचार
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